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चीन और पाकिस्तान की दोस्ती इस्पाती है जबकि भारत-चीन दोस्ती शीशाई है

यदि चीन वैसी पहल वास्तव में करे तो उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने में कोई हानि नहीं है, क्योंकि यह तो आप मानकर चलिए कि चीन कश्मीर के अलगाव की बात का खुला समर्थन कभी नहीं करेगा

New Delhi, Jun 24 : भारत में चीन के राजदूत ल्यो झाओहुई ने एक कमाल का प्रस्ताव रख दिया है। उन्होंने एक कूटनीतिक संगोष्ठी में कह दिया कि भारत, पाकिस्तान और चीन- तीनों पड़ौसी राष्ट्र मिलकर एक त्रिपक्षीय बैठक क्यों न रखें ? चीनी राजदूत का इस विषय पर मुंह खुला नहीं कि हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक तीखा जवाब ठोक दिया। उसने कह दिया कि यह चीनी राजदूत की व्यक्तिगत राय है। चीनी सरकार का इस संबंध में कोई आधिकारिक प्रस्ताव नहीं आया है।

इसके अलावा इस मुद्दे पर भारत की जो बंधी-बंधाई पुरानी टेक है, उसे ही हमारे प्रवक्ता ने दोहरा दिया है अर्थात भारत-पाक मामले द्विपक्षीय हैं। उसमें तीसरे देश का क्या काम है ? प्रवक्ता का यह कहना इस दृष्टि से ठीक है कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती इस्पाती है जबकि भारत-चीन दोस्ती शीशाई है। कभी भी तड़क सकती है और उसमें पहले से कई तड़कनें हैं। चीन का पलड़ा पाकिस्तान की तरफ बरसों से झुका चला आ रहा है। चीन ने उसे परमाणु बम दिया। उसके आतंकवादियों के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र को वह कोई कदम उठाने नहीं दे रहा। वह भारत को परमाणु सप्लायर्स ग्रुप का सदस्य बनने नहीं दे रहा। ऐसे में दूध का जला भला छाछ को भी फूंक-फूंककर क्यों नहीं पियेगा ?

लेकिन यदि चीन वैसी पहल वास्तव में करे तो उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने में कोई हानि नहीं है, क्योंकि यह तो आप मानकर चलिए कि चीन कश्मीर के अलगाव की बात का खुला समर्थन कभी नहीं करेगा, क्योंकि उसके तिब्बत, सिंक्यांग और इतर मंगोलिया की समस्याएं कश्मीर से भी अधिक गंभीर और अधिक पुरानी हैं। यह भी सच है कि पाकिस्तान पर से अमेरिका का साया लगभग उठता-सा नजर आ रहा है और अब वह चीन के ही रहमो-करम पर निर्भर है। यदि चीन उसे समझाएगा तो शायद उसकी बात उसके गले उतर जाए। भारत से चीन इसलिए भी दोस्ती बढ़ाना चाहता होगा कि अब अमेरिका से उसका तनाव बढ़ रहा है।

उधर ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारतीय और पाक सेनाएं रुस में संयुक्त सैन्य-अभ्यास करेंगी। यदि भारत-पाक संबंध सामान्य हो जाएं तो पाकिस्तान तो अधिक सबल और समृद्ध हो ही जाएगा, भारत की इतनी उन्नति हो सकती है कि भारत और चीन मिलकर 21 वीं सदी को सचमुच एशिया की सदी बना सकते हैं। रेशम महापथ (ओबोर) के मामले में भारत-चीन मतभेद जरुर हैं लेकिन ये दों राष्ट्र अफगानिस्तान में संयुक्त प्रोजेक्ट लगाने के लिए तैयार हो गए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि यही किस्सा पाकिस्तान में दोहराया जाए। पाकिस्तान के भावी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने कोरियाओं के उदाहरण से यही आशा प्रकट की है। विदेश सचिव विजय गोखले पर बहुत कुछ निर्भर करता है, क्योंकि हमारे नेताओं पर तो अभी से 2019 के चुनाव का बुखार चढ़ गया है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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