New Delhi, Aug 03 : असम में ‘नागरिकों के रजिस्टर’ को लेकर जो विवाद छिड़ गया है वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अपनी नागरिकता को पंजीकृत करवाने के लिए 3 करोड़ 29 लाख लोगों ने आवेदन किया था। उसमें से अभी तक 2 करोड़ 89 लाख नामों को पंजीकृत किया गया है अर्थात शेष 40 लाख लोगों की नागरिकता अभी तय नहीं हुई है। इसी को लेकर संसद में और उसके बाहर जबर्दस्त कहा-सुनी का दौर चल रहा है।
विरोधियों और खासतौर से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि लाखों लोगों को उस रजिस्टर में इसलिए जगह नहीं मिली कि उनके ‘उपनाम’ देखकर ही उनके नाम काट दिए गए।
यह देश की सुरक्षा और शासन-व्यवस्था का शुद्ध सांप्रदायीकरण है। ममता और राहुल दोनों ही अपने आप को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बता रहे हैं और इतने गैर-जिम्मेवाराना बयान कैसे जारी कर रहे हैं ?
जो लोग 24 मार्च 1971 के बाद भारत में घुसे हैं, उन्हें तो वापस जाना ही होगा। जहां तक असम का सवाल है, इन 40 लाख लोगों को अभी दो माह का समय दिया गया है ताकि वे अपने दस्तावेज और अपने प्रमाण ठीक से जुटाकर सरकार में जमा करा दें। उन्हें शायद दिसंबर तक का समय मिल सकता है। इन लोगों में बांग्लादेशी मुसलमान और भारत के कई अन्य प्रांतों के हिंदू भी हैं। संसद में गृहमंत्री राजनाथसिंह ने इन 40 लाख लोगों को पूरी तरह आश्वस्त किया है। नागरिकता जांचने की यह प्रक्रिया मनमोहनसिंह सरकार के समय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर शुरु हुई थी। इस पर अब तक 1200 करोड़ रु. खर्च हुए हैं और इसमें 62000 कर्मचारी जुटे हुए हैं। लगभग 6.50 करोड़ दस्तावेजों की जांच की गई है। यह दुनिया का सबसे बड़ा जांच-अभियान है। इसकी कमियों पर उंगली जरुर रखी जाए लेकिन इसे सफल बनाने की कोशिश सभी दलों को मिलकर करनी चाहिए।
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