New Delhi, Sep 02 : “भारत तेरे टुकड़े होंगे… इंशा अल्लाह… इंशा अल्लाह”… शहरी नक्सलियों का यही अरमान है, आखिर इनके मन में भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का ये विचार आया कहां से? जैसे ही आप किसी वामपंथी के सामने राष्ट्र या राष्ट्रवाद की बात करेंगे तो उसे अचानक 440 वोल्ट का करंट लग जाता है। वो आपको फासीवादी कहने लगता है। ध्यान रहे, ये वामपंथी शहरी नक्सली भी हो सकता है। आखिर हमारे राष्ट्र या राष्ट्रवाद से इन वामपंथियों (टुकड़ा-टुकड़ा गैंग) को इतनी नफरत क्यों हैं ?
दरअसल इसकी वजह है इनके “परमपिता परमेश्वर” कार्ल मार्क्स… जिनकी नजर में भारत एक देश नहीं था, बल्कि टुकड़ों में बंटा एक इलाका था… मार्क्स के भारत के बारे में ये अज्ञानी विचार 25 जून 1853 को न्यूयार्क के डेली ट्रिब्यून (अंक 3804) में प्रकाशित हुए थे। अब अपने “परमपिता परमेश्वर” के विचारों का पालन करते हुए हमारे भारतीय वामपंथियों यानि “टुकड़ा-टुकड़ा गैंग” ने भारत के “टुकड़े-टुकडे” करने के लिए क्या किया आप ये जान लीजिए…
मार्च 1940 में जब जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की तो सबसे पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानि “टुकड़ा-टुकड़ा गैंग” ने इसका समर्थन किया। लेकिन इस सच्चाई को इतिहास की किताबों से गायब कर दिया गया है, क्योंकि इन किताबों को तो इन्ही वामपंथियों ने लिखा है। लेकिन एक वामपंथी ऐसा था जिसने इस सच को लिख दिया।
जनता द्वारा चुने गए दुनिया के पहले कम्युनिस्ट नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद ने अपनी किताब “Reminiscences of an Indian Communist” में लिखा है कि “भारत की जनता कम्युनिस्ट पार्टी से सिर्फ इसलिए दूर नहीं रहती है क्योंकि उसने स्वतंत्रता संघर्ष और भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था बल्कि इसका एक बड़ा कारण ये है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पाकिस्तान के निर्माण और बंटवारे का समर्थन किया था”
1946 में जब कैबिनेट मिशन आया तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने उसके सामने भारत को 17 हिस्सों में बांटने की वकालत की थी।
दरअसल ये “टुकड़ा-टुकड़ा गैंग” सोवियत संघ के खूनी तानाशाह स्टालिन के उस विचार पर चल रहा था जिसके मुताबिक सोवियत संघ के राज्यों को आत्मनिर्णय का अधिकार था… और हुआ क्या नब्बे की दशक की शुरुआत में सोवियत संघ “टुकड़ा-टुकड़ा” हो गया। आज भी ये वामपंथी गैंग हमारे राष्ट्र को सोवियत संघ की तरह “टुकड़े-टुकड़े” करना चाहता है।
समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया (जो कि बिल्कुल संघी नहीं थे) ने अपनी किताब “भारत विभाजन के गुनाहगार” में लिखा है कि – “वामपंथी लोग जब सत्ता में नहीं रहते तो राष्ट्रवाद को अपना दुश्मन समझते हैं और इसीलिए उसे कमज़ोर बनाने के लिए अलगाव (बंटवारे की नीति) को बढ़ावा देने लगते हैं। वामपंथ ने हमेशा भारत देश को कमज़ोर बनाया है, लेकिन फिर भी वामपंथी अपने सपने (भारत के टुकड़े-टुकड़े करना) को पूरा करने की आशा में अब तक अंधे हैं”
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