Categories: सियासत

भाजपा और कांग्रेस का शीर्षासन

ये सब मिलकर भाजपा सरकार को इसलिए कोस रहे हैं कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को उलट दिया है।

New Delhi, Sep 07 : भाजपा आज बहुत बड़ी दुविधा में फंस गई है। इधर वह साहिल और उधर तूफान से टकरा रही है। उसकी चुनावी नाव डगमगाने लगी है। जनसंघ और भाजपा का मुख्य जनाधार था– बनिया-ब्राह्मण जातियां। अब ये ही उसके विरुद्ध बंदूक ताने खड़ी हो गई हैं। इनके साथ राजपूत और लगभग सभी पिछड़ी जातियां भी जुड़ गई हैं।

ये सब मिलकर भाजपा सरकार को इसलिए कोस रहे हैं कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को उलट दिया है, जिसके अनुसार कानून ने अनुसूचित जातियों और कबीलों के लोगों को ऐसे मनमाने अधिकार दे दिए गए थे कि वे किसी भी नागरिक को गिरफ्तार करवा सकते थे। पिछले दस-पंद्रह साल में ऐसे हजारों झूठे मामले अदालत में सामने आए। इसीलिए अदालत ने दलित अत्याचार की शिकायत आने पर गिरफ्तारी के पहले कुछ सावधानियां बरतने का कानून बना दिया था। दलितों ने इसका विरोध किया। मोदी की दब्बू सरकार ने तत्काल घुटने टेक दिए। संसद में संशोधन करके उसने उस कानून के सभी अत्याचारी प्रावधानों को जस का तस लौटा लिया। इसमें सिर्फ मोदी ने ही दब्बूपन नहीं दिखाया।

कांग्रेस समेत सभी विरोधी पार्टियों ने इस अनैतिक और अव्यावहारिक कानून का आंख मींचकर समर्थन कर दिया, क्योंकि सभी पार्टियां थोक वोटों की गुलाम हैं। कोई भी पार्टी राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं मानती। उनका अपना हित सर्वोपरि है।

अब मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में सवर्णों के आंदोलनकारियों ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों के नेताओं की खाट खड़ी कर दी है। उन्होंने डर के मारे अपनी सभाएं और जुलूस स्थगित कर दिए हैं। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज-चौहान का आरोप है कि ये प्रदर्शन कांग्रेस करवा रही है। शायद यह सच हो, क्योंकि असली नुकसान तो भाजपा का ही होना है। वह सत्तारुढ़ है। केंद्र की भाजपा सरकार ने ही अदालत की राय को उल्टा है। उसके दुष्परिणाम अब राजस्थान, मप्र, उप्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारें भुगतेंगी। करें मोदी और भुगतें शिवराज, वसुंधरा, रमन और योगी ! कोई आश्चर्य नहीं कि देश के दलित और आदिवासी भाजपा के साथ हो जाएं लेकिन देश के बहुसंख्यक लोग- सवर्ण, पिछड़े, मुस्लिम और ईसाई लोग विपक्ष के खेमे में खिसक जाएं। यह जातिवादी राजनीति पता नहीं, क्या-क्या गुल खिलाएगी ? अभी तो इसने भाजपा और कांग्रेस, दोनों को शीर्षासन करवा दिया।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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