New Delhi, Sep 18 : हिंदुस्तान टाइम्स का एडिटोरीयल है कि विपक्ष को मायावती की ज़रूरत है. गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के उप-चुनावों का नतीजा बताता है कि महागठबंधन में मायावती का होना कितना ज़रूरी है. लेकिन मायावती के तेवर ऐसे हैं जैसे उन्हें किसी की ज़रूरत ही नहीं. दलित युवा नेता चंद्रशेखर रावण को जिस तरह अपने से दूर छींटकने की जल्दी उन्होंने दिखाई, उससे साफ़ है कि वो दलितों की नुमाइंदगी नहीं बल्कि ठेकेदारी की इच्छा रखती हैं. वो दलित नेता तो बन गयीं लेकिन लीडरशिप दिखाई नहीं देती क्योंकि ना वो पार्टी के अपनों को संभाल पायीं और ना किसी को अपनाना चाहती हैं.
अभी से ही वो प्रेस में कहने लगीं हैं कि ‘सम्माजनक’ सीटें दीजिए वरना अलग लड़ेगी मेरी पार्टी. अभी भी संप्रदायिकता और दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार से लड़ना उनकी प्राथमिकता में दिखाई नहीं देता. कांग्रेस ने गुजरात में जिगणेश मेवानी को समर्थन दिया,
मायावती जब मुख्यमंत्री पद पर पहुँची तो ये इस देश की ऐतिहासिक घटना थी जिस पर गर्व ही करना चाहिए. दलित महिला राजनीतिज्ञ होने की वजह से उन्हें सेलिब्रैट किया जाता है तो फिर इन्हीं मुद्दों पर उनसे सवाल बनते हैं ना.
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