New Delhi, Nov 24 : क्या कभी सोचा आपने रावण जैसे महाविद्वान का आखिर इतना बुरा अंत क्यों हुआ । क्यों असुर श्रेष्ठ माने जाने वाले कई सूरमा मिट्टी में मिल गए । क्यों तप करके पाए हुए वरदान भी उन्हें बचा नहीं पाए । धर्म ग्रंथों में कई ऐसी बातें कही गई हैं, जिनमें मनुष्य के आचरण से जुड़े तथ्य उजागर होते हैं । वो सभी मनुष्य तो धर्म से ऊपर खुद को समझते, परमात्मा की बनाई वस्तुओं से खुद को अलग मानते हैं एक ना एक दिन पीड़ादाई अंत में समा जाते हैं । जाने अनजाने वो ऐसे पाप के भागीदार बन जाते हैं जिनसे उबर पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है ।
श्रीमद्भागवत गीता के वचन
हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने ज्ञान और नीति के कई उपदेश दिए हैं। इस महाग्रंथ में 5 बातों के बारे में बताया गया
गीता के इस श्लोक में है सार
गीता में एक श्लोक है जिसमें इन 5 बातों के बारे में बताया गया है । श्लोक इस प्रकार है : –
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।
अर्थात- जो व्यक्ति देवताओं, वेदों, गौ, ब्रह्माणों-साधुओं और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है। वो पाप
आप भी बनेंगे पाप के भागीदार
यानी संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य जो ईश्वर, गाय, ब्राह्मणों, साधु और संतों तथा धर्म के बारे में गलत सोचता है, वो पाप का भागीदार बनता है
गाय का अपमान,महापाप
गाय पृथ्वी पर अकेला ऐसा जानवर है जिसके हर एक अंग, हर एक अपशिष्ट का भी मल्य है । गाय को सताने वाला नर्क में भी जगह नहीं पाता
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