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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को प्रथम राष्ट्रपति नहीं बनाना चाहते थे नेहरु, इस शख्स ने की थी उनके नाम की घोषणा

एक आम नागरिक से देश के प्रथम नागरिक तक का सफर राजेन्द्र प्रसाद के लिये आसान नहीं था, हालांकि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी उन्होने बेहद सादगी से अपना जीवन जिया।

New Delhi, Dec 03 : आज महान शिक्षाविद्, कुशल प्रशासन और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्मदिन है, आपको बता दें कि राजेन्द्र बाबू का जन्म बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गांव जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था, राजेन्द्र बाबू 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक राष्ट्रपति के पद पर रहे, आइये उनके जन्मदिन के खास मौके पर उनसे जुड़ी कुछ बातें बताते हैं।

आसान नहीं था सफर
एक आम नागरिक से देश के प्रथम नागरिक तक का सफर राजेन्द्र बाबू के लिये आसान नहीं था, हालांकि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी उन्होने बेहद सादगी से अपना जीवन जिया, पद छोड़ने के बाद वो अपना आगे का जीवन जीने के लिये एक छोटी सी कुटिया चुनी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बारे में कहा जाता है कि जब वो राष्ट्रपति थे, तो वो पूरी सैलरी भी नहीं लेते थे, वो उतना ही पैसा लेते थे, जिसमें उनका खर्च चल जाए।

नेहरु इन्हें बनाना चाहते थे प्रथम राष्ट्रपति
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु तत्कालीन गवर्नर जनरल सी राजगोपालचारी को प्रथम राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे, जबकि गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल समेत कई अन्य बड़े नेता राजेन्द्र बाबू के पक्ष में थे, अन्य नेताओं के विरोध के बाद ये तय हुआ कि सरदार पटेल और नेहरु मिलकर राष्ट्रपति के नाम तय करेंगे, दोनों बैठे, पहले तो मतभेद हुए, लेकिन जब सरदार पटेल राजेन्द्र बाबू की नाम पर अड़ गये, तो नेहरु ने उनकी बात मानते हुए कहा कि आप ही उनके नाम की घोषणा कर दीजिए। जिसके बाद सरदार पटेल ने प्रथम राष्ट्रपति के नाम का ऐलान किया।

हिंदुस्तानियत उनमें सोलहों आने थी- नेहरु
जवाहर लाल नेहरु के विरोध के बावजूद जब राजेन्द्र बाबू को राष्ट्रपति चुना गया, तो नेहरु ने भी उन्हें स्वीकार किीया था, 28 फरवरी 1963 को पटना में राजेन्द्र बाबू के निधन के बाद तत्कालीन पीएम नेहरु ने कहा था कि उनका और मेरा 45 बरस का साथ रहा, इस लंबे अरसे में मैंने उन्हें करीब से देखा और बहुत कुछ सीखा, मामूली हैसियत से वो भारत के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचे, फिर भी उन्होने अपने जीवन का तर्ज नहीं बदला, उनके अंदर हिंदुस्तानियत सोलहों आने थी।

सामान्य परिवार में जन्म
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बेहद सामान्य परिवार में हुआ था, वो हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली और पारसी भाषा के जानकार थे, कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा में उन्होने पहला स्थान हासिल किया था, जिसके लिये उन्हें 30 रुपये प्रति माह की स्कॉलरशिप मिली थी, साल 1915 में उन्होने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की, इसके लिये उन्हें गोल्ड मेडल मिला था। महज 13 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था। कानून की पढाई करने के बाद वो वकील बनें, फिर बिहार के बड़े वकील और नेता के रुप में चर्चित रहे।

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