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‘आरक्षण बिल पर कुतर्क करने वाले को कौन समझाये, कि शादी के समय ही बैंड बजाया जाता है’

लोकसभा में जो मिमियाया विपक्ष राज्यसभा में आ कर शेर बन जाता रहा है , आज वही विपक्ष राज्यसभा में बहुमत होते हुए भी मिमियाया हुआ है ।

New Delhi, Jan 10 : जहर में डूबे कुछ लोग पूछ रहे हैं कि अगर सामान्य वर्ग के लोगों को दस परसेंट आरक्षण देना ही था तो पहले ही क्यों नहीं दिया ? यह चलते-चलते देने का क्या मतलब ? यह सवाल वैसे ही है जैसे किसी की शादी में बैंड बजने लगे तो आप पूछें कि भैया , शादी तो बहुत पहले ही तय हो गई थी , बैंड आज क्यों बजा रहे हो , पहले क्यों नहीं बजाया। गज़ब सवाल है । अब कौन बताए कि इस देश की चुनावी राजनीति में कोई एक भी पूजा-पाठ करने नहीं , हर कोई राजनीति करने ही आया है । नहीं , कौन नहीं जानता कि इस देश की जनता काम से नहीं , विकास से नहीं , उपलब्धियों से नहीं , तिकड़म और झूठा वादा करने वालों को ही वोट देती है ।

नरेंद्र मोदी को मालूम है नोटबंदी , जी एस टी , सर्जिकल स्ट्राइक जैसे गेमचेंजर काम लोग भूल चले हैं । एस सी एस टी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला संसद में गलत ढंग से बदल देना लोग याद कर चुके हैं । तीन राज्यों में इस का सबक लोग सिखा चुके हैं । तो बतौर मरहम यह सामान्य वर्ग को दस परसेंट आरक्षण का झुनझुना थमा कर बजा दिया है । कि कांग्रेस , सपा आदि के लोग भी अपने भाषणों में विरोध कर-कर भी इस दस परसेंट का समर्थन घोषित कर रहे हैं । बहुत दर्द के साथ ही सही समर्थन घोषित कर रहे हैं । इसे ही कहते हैं जबरा मारे और रोने न दे । जिसे आप फेंकू कहते हैं , उस फेकू ने ऐसा फेंका है दस परसेंट कि समूचा विपक्ष घायल हो कर त्राहिमाम कर गया है । सारा जहर धुल गया है , कि छुप गया है , कि छुपा लिया गया है । राफेल की लहर विलुप्त है । मुट्ठी तनी हुई तो है , पर कांख भी छुपी हुई है । रामविलास पासवान जैसे लोग , अठावले जैसे लोग कसीदा पढ़ रहे हैं । आनंद शर्मा , राम गोपाल यादव जैसे लोग जैसे तैसे अपने को लपेट रहे हैं ।

लोकसभा में जो मिमियाया विपक्ष राज्यसभा में आ कर शेर बन जाता रहा है , आज वही विपक्ष राज्यसभा में बहुमत होते हुए भी मिमियाया हुआ है । गीदड़ बन गया है कि गिरगिट अब यह आप खुद तय कर लीजिए ।

सामाजिक न्याय और सेक्यूलिरिज्म के सारे गिरगिट रंग बदल कर आज राज्यसभा में उपस्थित दिख रहे हैं । समर्थन की मुद्रा में । यह दस परसेंट का लालीपाप गलत है या सही इस पर सब की अपनी-अपनी राय हो सकती है । लेकिन सवर्ण वोट बैंक भी कोई फैक्टर है , यह बीते विधानसभा चुनावों में तो साबित हुआ ही था , आज राज्यसभा की बहस में भी साबित हो गया है । एकाध अपवाद को छोड़ कर सभी के सभी इस दस परसेंट के समर्थन में विवश हो कर ही सही , खड़े हैं । एक से एक जहरीले लोग भी आज सवर्णों के लिए गुलाब जल लिए खड़े हैं । क्या वोट बैंक है , सवर्ण भी । और कि चलते-चलते फेंकू ने भी क्या फेंका है । स्पोर्ट की भाषा में कहें तो जेवलिन थ्रो । बहुत दूर तक गया है । जो आर्थिक आधार पर आरक्षण का भी आधार बन चुका है । मजा यह कि हमारे मित्र राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश भी बहुत आनंद से चुटकी ले-ले कर राज्यसभा को चला रहे हैं ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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