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लालू यादव की चुनावी गुगली में फिर फंसी कांग्रेस, ‘असमंजस’ में मांझी और कुशवाहा

सवर्ण आरक्षण ने बिहार की राजनीति को बड़ा चुनावी मुद्दा दे दिया है, लेकिन विश्लेषकों के अनुसार लालू प्रसाद की राजनीति को ये मुद्दा बड़ा रास आता है।

New Delhi, Jan 11 : आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बिहार में कांग्रेस को फिर से अपनी सियासी गुगली में फंसा लिया है, गरीब सवर्णों को आरक्षण के मसले पर कांग्रेस के साथ महागठबंधन के अन्य घटक दलों के सामने भी दुविधा है, दरअसल राजद ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध कर अपने परंपरागत वोट बैंक को खुश करने की चाल चली है, जो उनके साथी दलों को रास नहीं आ रही है।

असमंजस में कांग्रेस
सवर्ण वोट बैंक को साधकर बिहार में अपना आधार बढाने में लगे कांग्रेस के सामने असमंजस की स्थिति है, वो गठबंधन की राजनीति में राजद के साथ कैसे पेश आये, उसे लेकर पसोपेश की स्थिति बनी हुई है, ऐसा ही हाल कुछ जीतन राम मांझी की पार्टी की भी है, मांझी ने तो सवर्णों के लिये 15 फीसदी आरक्षण की पैरवी की थी, अब अपने स्टैंड की हिफाजत करते हुए उन्हें राजद सुप्रीमो से निपटने में मुश्किल आ रही है।

कांग्रेस का वोट बैंक
आपको बता दें कि परिवार में अतीत में कांग्रेस को सवर्णों से बड़ा सहारा मिलता रहा है, लेकिन ये वोट बैंक मंडल आंदोलन के बाद बीजेपी और जदयू की ओर शिफ्ट हो गया, कांग्रेस ने रही-सही कसर साल 2000 विधानसभा चुनाव के बाद पूरी कर दी, तब कांग्रेस लालू की गोद में जा बैठी, जिसके बाद सवर्ण पूरी तरह से कांग्रेस से नाराज हो गये, और बीजेपी-जदयू को वोट करने लगे।

मांझी-कुशवाहा को आस
महागठबंधन के मुख्य घटक जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा को भी सवर्णों से आस है, उन्हें पता है कि बीजेपी-जदयू की ताकत को तोड़ने के लिये सवर्णों का साथ जरुरी है, यही वजह है कि सवर्ण आरक्षण के मसले पर इन दोनों नेताओं ने लालू प्रसाद से अलग राह पकड़ ली है। इसके साथ ही कांग्रेस भी अलग ही सुर दिखा रही है, कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि राजद-कांग्रेस की विचारधारा अलग-अलग है, गठबंधन अपनी शर्तों पर हुआ है, हालांकि इस बात को लेकर सब हैरान हैं कि पिछले चुनाव में राजद ने अपने घोषणा पत्र में गरीब सवर्णों के लिये 10 फीसदी आरक्षण की वकालत की थी, लेकिन अब विरोध कर रहे हैं।

लालू को रास आती है आरक्षण की सियासत
सवर्ण आरक्षण ने बिहार की राजनीति को बड़ा चुनावी मुद्दा दे दिया है, लेकिन विश्लेषकों के अनुसार लालू प्रसाद की राजनीति को ये मुद्दा बड़ा रास आता है, मंडल आंदोलन से ही वो सियासत के शीर्ष पर पहुंचे थे, तीन साल पहले भी 2015 विधानसभा चुनाव में मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये बयान को लालू प्रसाद ने लपका था, जिसका नतीजा हाशिये पर पड़ी उनकी पार्टी बिहार में नंबर वन बन गई, इस बार भी उन्होने ट्वीट करके और उनके बेटे तेजस्वी यादव ने बयान देकर इसका विरोध किया है।

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