New Delhi, Jan 22 : कोलकाता में हुई विपक्ष की महारैली पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने काफी तीखी प्रतिक्रियाएं की हैं। मोदी और राहुल गांधी की प्रतिक्रियाओं पर प्रतिक्रिया करने की हिम्मत किसकी है ? उस स्तर तक पहुंचना ही मुश्किल है लेकिन जावड़ेकर ने बड़े पते की बात कही है। उनका कहना है कि 2019 में या तो मोदी आएंगे या फिर अराजकता आएगी। यदि मोदी नहीं आए तो अराजकता का आना सुनिश्चित है।
इस बात में थोड़ा दम जरुर है। क्योंकि अभी तक जो भी गठबंधन की सरकारें बनी हैं या तो वे साल-दो साल में गिर जाती हैं या उनमें इतनी खींचतान चलती है कि उनका अपना चलना या न चलना एक बराबर हो जाता है। अब कोलकाता में जिस महागठबंधन का बीज बोया गया है, उसमें ऐसी पार्टियां एकजुट हो रही हैं, जो एक-दूसरे की जानी दुश्मन रही हैं। इतना ही नहीं, इस महागठबंधन में कम से कम दो दर्जन नेता ऐसे हैं, जिनके सीने में प्रधानमंत्री पद धड़क रहा है। यदि उनकी सरकार बन गई तो वह किसी भी हालत में पांच साल कैसे पूरे करेगी ? लेकिन यहां एक यक्ष-प्रश्न हमारे सामने आ खड़ा होता है। वह यह कि आपने पांच साल सरकार चलाई लेकिन आपने गप्पे झाड़ने के अलावा किया क्या ?
आपके पास दिखाने के लिए क्या है ? एक छलनी है, जिसमें छेद ही छेद हैं। अटलजी की दूसरी सरकार क्या पांच साल की थी ? उन्होंने परमाणु-विस्फोट किया। भारत की संप्रभुता का शंखनाद किया। वह तो सिर्फ 13 माह की सरकार थी, मार्च 1998 से अप्रैल 1999 तक ! वह सरकार स्पष्ट बहुमत की सरकार भी नहीं थी। अटलजी ने 56 इंच के सीने की कभी डींग भी नहीं मारी। डाॅ. लोहिया हम नौजवानों से कहा करते थे कि ‘‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।’’ यदि मोदी को पांच साल दुबारा मिल गए तो डर है कि संघ और भाजपा का कहीं नामो-निशान ही मिट न जाए। न कोई सत्तारुढ़ दल रहे और न ही कोई विपक्षी दल। सिर्फ भाई-भाई पार्टी रह जाए।
एक ऐसा मोदीयुक्त भारत बन जाए जो भाजपा और कांग्रेस दोनों से मुक्त हो। क्या वह अराजक भारत नहीं होगा ? पांच साल तक घिसटनेवाले अपंग भारत से क्या ज्यादा अच्छा वह ‘अराजक’ भारत नहीं है, जो साल-दो साल चले लेकिन जमकर चले, दौड़े और दुनिया को बताए कि राज करना क्या होता है। सरकारें तो तवे पर चढ़ी रोटियों की तरह होती हैं, उन्हें उलटने-पलटने पर ही वे जलने से बच जाती हैं और अच्छी सिक जाती है। पिछले 70 साल में कई गठबंधन सरकारें बनीं लेकिन कौनसी अराजकता फैल गई ?
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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