New Delhi, Feb 14 : यह तस्वीर दिल्ली के अंकित सक्सेना की है। अंकित यानी हमारे दौर में प्रेम का सबसे बड़ा प्रतीक। एक रीयल लाइफ हीरो। जिंदगी,जिंदादिली और रुमानियत से भरपूर अंकित की उम्र 23 साल थी। वह एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर था, उसके सपने बहुत बड़े थे।
अंकित ने प्यार किया था और बहुत डूबकर किया था। जिस लड़की से उसे मुहब्बत थी, वह भी अंकित के लिए अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार थी। लेकिन लड़की के परिवार वालों तो अंकित पसंद नहीं था क्योंकि उसका मजहब कुछ और था।
प्रेमियों को अलग करने के लिए लड़की के परिवार वालों ने बेहद हिंसक और अमानवीय रास्ता चुना। अंकित का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। नफरती माहौल में एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे देश को हिला दिया था।
लेकिन कलेजे पर पत्थर रख चुके अंकित के परिवार वालों ने तय किया कि वे नफरती मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। अंकित के पिता ने देश से हाथ जोड़कर कहा कि इस मामले को सांप्रदायिक मुद्धा ना बनने दें, बावजूद इसके कि अंकित के साथ जो हुआ वह पूरी तरह हेट क्राइम था।
अंकित के जाने के बाद परिवार आये आर्थिक संकट और मदद की कोशिशों की खबरें आती रहीं। इसी बीच रमजान का महीना आया और खबर यह आई कि अंकित के पिता ने आसपास के लोगो को घर बुलाकर इफ्तार करवाया है। अंकित के पिता ने कहा– ऐसा करके मुझे शांति मिलती है। प्रेम की जो लौ अंकित के दिल में जल रही थी, वही अंकित के महान पिता ने भी जलाये रखी। वाकई वे हमारे समय के एक बड़े नायक हैं।
अंकित के पिता जैसी ही कहानी आसनसोल के सिब्तुल रशीदी के पिता की है। परीक्षा देने जा रहा 16 वर्षीय सिब्तुल सांप्रादायिक उपद्रव की भेंट चढ़ गया। आसपास के लोगो ने इससे उपजे आक्रोश को भुनाने की कोशिश की। लेकिन सिब्तुल के इमाम पिता ने साफ कहा– अगर किसी तरह की हिंसा हुई तो मैं शहर छोड़कर चला जाउंगा। .. और इस तरह बेटे को खोने वाले एक बाप ने अपने शहर में उन्माद की आंधी को रोक लिया।
अंकित और सिब्तुल के पिता हमारे समय के सबसे महान लोग हैं। प्रेम के सच्चे संवाहक। हमारे आसपास ना जाने ऐसे कितने नायक हैं। दिल्ली की अवंतिका माकन ने 6 साल की उम्र में हुए आतंकवादी हमले में अपने माता-पिता को खो दिया था। जिस आतंकवादी ने उनकी जान ली थी, वह उम्र कैद की सजा काट रहा था।
अवंतिका ने होश संभाला तो उसने महसूस किया कि बेशक उसके माता-पिता नफरत के शिकार रहे हों लेकिन नफरत का मुकाबला नफरत से नहीं किया जा सकता है। अवंतिका उस हत्यारे आतंकवादी और उसके परिवार वालों से मिलीं और उन्हे बताया कि उनके मन में किसी तरह की नफरत नहीं है।
अवंतिका ने कहा उनके लिए ऐसा करना आसान नहीं था। लेकिन ऐसा करके उन्हें बहुत शांति मिली। उड़ीसा में अपने दो मासूम बच्चों के साथ जिंदा जला दिये गये पादरी ग्राहम स्ट्रेंस की पत्नी ने भी यही किया। उन्होंने ने हत्यारे दारा सिंह को माफ करने की वकालत की।
आम धारणा यह है कि हर कोई ईसा या गांधी नहीं हो सकता। माफ करना आसान नहीं है। हम में से ज्यादातर लोग चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन बड़ा दिल दिखाने वालों का सम्मान तो कर सकते हैं। वेलेंटाइंस डे पर ऐसे लोगों को भी याद रखना चाहिए जिन्होने सबकुछ खोकर भी प्रेम और सद्भाव को बनाये रखा है।
(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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