Categories: सियासत

राहुल गांधी को जनता नकार चुकी है, यूपी की राजनीति में प्रियंका से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा

राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश की जनता सिरे से नकार चुकी है. राहुल गांधी अब इस स्थिति में नहीं हैं कि वह कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मजबूत कर सकें।

New Delhi, Feb 21 : उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को उतारा है. उन्हें पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया है. मीडिया गुणगान कर रहा है. चुनाव से पहले और प्रचार के दौरान पार्टी की रणनीति तय करने के साथ-साथ सारे फैसले अब प्रियंका लेंगी, टिकट भी वही बांटेंगी. उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में प्रियंका का सबसे अहम रोल होगा. टीवी चैनलों पर कांग्रेस के इस कदम को एक मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है. जबकि हकीकत ये है कि प्रियंका गांधी का कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनना कोई बड़ी घटना नहीं है, न ही मास्टर स्ट्रोक है. यह कोई बड़ी घटना इसलिए नहीं, क्योंकि वर्तमान की कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार की एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है. पार्टी पर परिवार का मालिकाना हक है. इसलिए गांधी परिवार के किसी सदस्य का पद धारण करना या न करना कोई मायने नहीं रखता है. कांग्रेस के नेताओं के लिए गांधी परिवार का हर सदस्य हाईकमान ही होता है. जब कोई औपचारिक घोषणा होती है, तो वह किसी रणनीति का हिस्सा होती है. लेकिन, मीडिया में इस खबर को इस तरह से पेश किया गया, जैसे कि वह पहली बार राजनीति में शामिल हुई हों. राजनीतिक विश्लेषकों ने कसीदे पढऩे शुरू कर दिए. ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई कि यह कोई ऐतिहासिक घटना है. अब सवाल है कि क्या प्रियंका उत्तर प्रदेश में कोई कमाल दिखा पाएंगी या नहीं?

कुछ लोगों को लगता है कि प्रियंका में इंदिरा गांधी की झलक दिखाई देती है. प्रियंका में एक एक्स फैक्टर है. जबकि हकीकत यह है कि प्रियंका ने बड़ी समझदारी के साथ अपनी मार्केटिंग भी की है. उन्होंने सबसे पहले ख़ुद को दादी इंदिरा गांधी जैसा बताया. सुबूत के तौर पर अपनी नाक दिखाई और कहा कि यह इंदिरा गांधी जैसी है और फिर अपनी साडिय़ों के बारे में बताया कि ये तो उनकी दादी की ही हैं. इतना ही नहीं, साडिय़ां भी वह इंदिरा जी की तरह ही पहनती हैं. प्रियंका ने संदेश दे दिया कि वह न केवल बहादुर हैं, बल्कि विपक्ष का सामना भी कर सकती हैं और देश को बेहतर युवा नेतृत्व दे सकती हैं. चुनावों में वह रायबरेली और अमेठी में प्रचार-प्रसार कई सालों से करती रही हैं. यह बात और है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जब अमेठी और रायबरेली की 10 सीटों में से आठ पर कांग्रेस पराजित हुई, तो न किसी मीडिया ने और न प्रियंका में इंदिरा गांधी की झलक देखने वाले विश्लेषकों ने हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया. पिछले 15 सालों के दौरान हुए हर चुनाव में प्रियंका की एंट्री ठीक उसी तरह से होती है, जैसे कि इस बार हुई. इस बार फर्क केवल इतना है कि वह अब कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में मैदान में उतर रही हैं.

प्रियंका 1999 में पहली बार चुनाव प्रचार में उतरीं. उन्होंने अपना सिक्का रायबरेली में आजमाया.वहां कांग्रेस पार्टी की तरफ से गांधी परिवार के करीबी सतीश शर्मा और भाजपा के उम्मीदवार अरुण नेहरू थे, जो किसी जमाने में राजीव गांधी के करीबी थे. प्रियंका के रायबरेली में आते ही चुनावी माहौल बदल गया. उनका पहला भाषण ही इतना प्रभावी था कि उनके विरोधियों के भी होश उड़ गए. रायबरेली की पहली जनसभा में प्रियंका ने कहा, मुझे आपसे एक शिकायत है. मेरे पिता के मंत्रिमंडल में रहते हुए जिसने गद्दारी की, भाई की पीठ में छुरा मारा, जवाब दीजिए, ऐसे आदमी को आपने यहां घुसने कैसे दिया? उनकी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई? प्रियंका गांधी जहां जातीं, वहां इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को याद करना नहीं भूलतीं.

इस चुनाव में अरुण नेहरू (भाजपा) और सतीश शर्मा (कांग्रेस) आमने-सामने थे. अरुण नेहरू की जीत लगभग पक्की थी, लेकिन प्रियंका ने चुनाव से तीन दिन पहले आकर ऐसा माहौल बना दिया कि सतीश शर्मा जीत गए. उस जीत के बाद से ही मीडिया ने यह कहना शुरू कर दिया कि प्रियंका गांधी में जादू है. जनता को उनमें इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. 1999 में जो बातें कही गईं, वही आज तक रिकॉर्ड प्लेयर की तरह घूम रही हैं. हर चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी को एक करिश्माई नेता बताया जाता है, उन्हें कांग्रेस का तुरुप का पत्ता बताया जाता है. मीडिया में वह ढेर सारी सुर्खियां बटोरती हैं और चुनाव के नतीजे आने के बाद फिर से सार्वजनिक जीवन से गायब हो जाती हैं.

कांग्रेस के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव ‘करो या मरो’ की स्थिति जैसा है. पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती 100 सीटें जीतने की है, जो फिलहाल पूरी होती दिख नहीं रही है. उत्तर प्रदेश और बिहार की 120 सीटों पर कांग्रेस के खाते में कुछ खास नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अखिलेश एवं मायावती का गठबंधन हो गया है और दोनों ने कांग्रेस पार्टी को केवल अमेठी एवं रायबरेली सीटें दी हैं. बिहार में भी यही स्थिति है. जहां तक बात उत्तर प्रदेश की है, तो इस राज्य में राहुल गांधी पिछले 15 सालों से घूम रहें हैं. लेकिन, संगठन को मजबूत करने में वह विफल रहे हैं. 2004 के बाद युवाओं को जोडऩे की कोशिश की, लेकिन युवा नहीं जुड़े. किसानों को जोडऩे के लिए राहुल गांधी ने पदयात्रा से लेकर रोड शो तक किए, लेकिन उससे भी कुछ नहीं हुआ. थक हार कर राहुल गांधी ने दूसरी पार्टियों के कई नेताओं को कांग्रेस में शामिल किया. नेता तो कांग्रेस में आ गए, लेकिन वोट नहीं मिला. पार्टी की हालत यह हो गई कि वह विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन होने के बावजूद सात सीटों पर सिमट गई.

राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश की जनता सिरे से नकार चुकी है. राहुल गांधी अब इस स्थिति में नहीं हैं कि वह कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मजबूत कर सकें. इसलिए कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह लगा कि प्रियंका इस स्थिति से निजात दिला सकती हैं. मजबूत संगठन न होने के नुकसान की भरपाई प्रियंका अपनी छवि से कर सकेंगी. कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि जब प्रियंका चुनाव प्रचार में उतरेंगी, तो विरोधियों में भगदड़ मच जाएगी. लेकिन, समझने वाली बात यह है कि प्रियंका गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 के विधानसभा चुनाव में यह काम कर चुकी हैं और इन चुनावों का परिणाम जो रहा, वह दुनिया के सामने है.

2019 में कांग्रेस की चुनौतियां पहले से ज्यादा गंभीर हैं. आगे बढऩे का रास्ता आसान नहीं है. उत्तर प्रदेश में महा-गठबंधन की चर्चा हो रही थी. कांग्रेस पार्टी इस भरोसे बैठी रह गई कि वह अखिलेश यादव एवं मायावती के साथ मिलकर कम से कम 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और भाजपा को आसानी से शिकस्त दे पाएगी. लेकिन, तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बावजूद कांग्रेस को अखिलेश एवं मायावती ने दरकिनार कर दिया. कांग्रेस को अब उत्तर प्रदेश में अकेले ही चुनाव लडऩा है. केवल प्रचार के जरिये पार्टी को संगठित करना आसान नहीं होगा. चुनाव में अब ज्यादा वक्त भी नहीं बचा है, इतनी जल्दी संगठन खड़ा नहीं किया जा सकता. इसलिए कांग्रेस ने प्रियंका पर जुआ खेला है. मकसद केवल सवर्ण मतदाताओं में सेंध मारना, चुनाव के नजरिए से पुराना वोट बैंक वापस खींचना, युवाओं के बीच पार्टी को लोकप्रिय बनाना और महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल करना है. कांग्रेस के ऱणनीतिकारों को भले ये लगता हो कि जो काम राहुल गांधी नहीं कर सके, उसे प्रियंका अपने प्रचार के जरिये कर सकती हैं. लेकिन सवाल ये है कि जो प्रियंका विधानसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली की सीटें नहीं बचा सकी वो लोकसभा में भला कैसे जीत दिला सकती है?

यह एक भ्रम है कि प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में पहले नहीं थीं. हकीकत यह है कि पिछले 20 सालों से वह कांग्रेस में सक्रिय रही हैं. सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद से ही वह उनके कैंपेन पर सीधा दखल रखती थीं. वह जनार्दन द्विवेदी के साथ मिलकर सोनिया गांधी के भाषण लिखती थीं. जब तक यूपीए की सरकार रही, तब तक सारे बड़े फैसले 10 जनपथ में हुआ करते थे, जिनमें हमेशा प्रियंका शामिल होती थीं. इतना ही नहीं, दिल्ली में प्रियंका गांधी की अपनी एक टीम है, जो कांग्रेस की रणनीति तैयार करने में अहम रोल अदा करती है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान इस टीम ने प्रशांत किशोर के साथ मिलकर चुनाव प्रचार की रूपरेखा तैयार की थी. उम्मीदवारों को तय करने में भी प्रियंका का काफी दखल रहा. अब तक वह पर्दे के पीछे से सब कुछ संचालित कर रही थीं. इस बार फर्क केवल इतना है कि उन्हें संगठन में महासचिव का पद दे दिया गया है. लेकिन खतरा ये है कि लोकसभा में सीटें न मिलने पर कांग्रेस की ये ट्रम्पकार्ड बेकार साबित हो जाएगी.

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
Leave a Comment
Share
Published by
ISN-2

Recent Posts

इलेक्ट्रिशियन के बेटे को टीम इंडिया से बुलावा, प्रेरणादायक है इस युवा की कहानी

आईपीएल 2023 में तिलक वर्मा ने 11 मैचों में 343 रन ठोके थे, पिछले सीजन…

10 months ago

SDM ज्योति मौर्या की शादी का कार्ड हुआ वायरल, पिता ने अब तोड़ी चुप्पी

ज्योति मौर्या के पिता पारसनाथ ने कहा कि जिस शादी की बुनियाद ही झूठ पर…

10 months ago

83 के हो गये, कब रिटायर होंगे, शरद पवार को लेकर खुलकर बोले अजित, हमें आशीर्वाद दीजिए

अजित पवार ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर निशाना साधते हुए कहा आप 83 साल…

10 months ago

सावन में धतूरे का ये महाउपाय चमकाएगा किस्मत, भोलेनाथ भर देंगे झोली

धतूरा शिव जी को बेहद प्रिय है, सावन के महीने में भगवान शिव को धतूरा…

10 months ago

वेस्टइंडीज दौरे पर इन खिलाड़ियों के लिये ‘दुश्मन’ साबित होंगे रोहित शर्मा, एक भी मौका लग रहा मुश्किल

भारत तथा वेस्टइंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच 12 जुलाई से डोमनिका में खेला जाएगा,…

10 months ago

3 राशियों पर रहेगी बजरंगबली की कृपा, जानिये 4 जुलाई का राशिफल

मेष- आज दिनभर का समय स्नेहीजनों और मित्रों के साथ आनंद-प्रमोद में बीतेगा ऐसा गणेशजी…

10 months ago