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भाजपा को बचाएगी कांग्रेस

यदि कांग्रेस हर राज्य में गठबंधन के लिए कुछ-कुछ सीटें छोड़ दे तो भी वह भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ेगी।

New Delhi, Mar 14 : लोकसभा चुनाव सिर पर आ गया है और विपक्षी गठबंधन ने अभी चलना भी शुरु नहीं किया है। उसके पांव अभी से लड़खड़ाने शुरु हो गए हैं। दो-तीन हफ्ते पहले जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम या घोषणा-पत्र बनाने की बात चली थी, वह भी अधर में लटक गई है। यदि देश के सबसे बड़े प्रदेश याने उप्र में भाजपा की टक्कर तिकोनी होगी याने वह कांग्रेस और सपा+बसपा गठबंधन से लड़ेगी तो जाहिर है कि विरोधियों के वोट बटेंगे और भाजपा को इसका फायदा मिलेगा।

हालांकि उप्र में संसद के उप-चुनावों में भाजपा की शिकस्त इतनी बुरी हुई थी कि यदि ये तीनों विपक्षी दल मिलकर लड़ते तो माना जा रहा था कि उप्र में भाजपा को 15-20 से ज्यादा सीटें नहीं मिल सकती थीं। दूसरे शब्दों में अकेला उप्र ही भाजपा की बधिया बिठाने के लिए काफी था। इसी तरह का ही हाल प. बंगाल में भी हो रहा है। ममता बेनर्जी ने घोषणा कर दी है कि तृणमूल कांग्रेस का गठबंधन किसी से नहीं होगा याने वहां भी त्रिकोणात्मक लड़ाई होगी। बल्कि चतुर्कोणात्मक, क्योंकि भाजपा, कांग्रेस और कम्युनिस्ट भिड़ेंगे तृणमूल से। ओडिशा में नवीन पटनायक भी एकला चालो का राग अलाप रहे हैं।

आंध्र में चंद्रबाबू नायडू का ऊंट किस करवट बैठेगा, कौन कह सकता है ? बिहार और दिल्ली में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात अभी तक परवान नहीं चढ़ी है। महाराष्ट्र में प्रकाश आंबेडकर की पार्टी भी कांग्रेस के साथ नहीं जा रही है तो क्या केरल में भी कम्युनिस्ट और कांग्रेसी अलग-अलग लड़ेंगे ? कर्नाटक में अभी तक कांग्रेस और जद (यू) में सीटों के बंटवारे पर खींचतान चल रही है। जम्मू-कश्मीर में विरोधी दलों का एका तो दूर की कौड़ी है। ऐसी हालत में सारे विरोधी दल मिलकर भाजपा को टेका लगा रहे हैं। वे भाजपा पर चाहे जो आरोप लगाएं और उन आरोपों में सत्यता हो तो भी ऐसी हालत में विपक्ष का जीतना असंभव है। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस की होगी, क्योंकि वह ही विपक्ष की एक मात्र अखिल भारतीय पार्टी है।

यदि कांग्रेस हर राज्य में गठबंधन के लिए कुछ-कुछ सीटें छोड़ दे तो भी वह भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ेगी। वह सबसे बड़ा विपक्षी दल बनेगी, जैसी कि वह आजकल भी है। यह भी संभव है कि वह ही विकल्प की सरकार का नेतृत्व करे लेकिन यह महागठबंधन यदि गड़बड़बंधन बनकर रह गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा को लगभग स्पष्ट बहुमत मिल जाए या वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर जाए। विपक्ष की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसके पास कोई सर्वसम्मत नेता भी नहीं है, जिसका होना इस मूर्तिपूजक देश में नितांत आवश्यक है।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप  वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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