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2014 के मुकाबले स्थिति है अलग, यूपी में इस चुनाव में बीजेपी के सामने क्या है 5 चुनौतियां

2014 आम चुनाव में ध्रुवीकरण का माहौल था, क्योंकि तब हाल ही में मुजफ्फरनगर का दंगा हुआ था, सितंबर 2013 में हुए इस दंगे का असर पूरे यूपी में दिखा था।

New Delhi, Apr 11 : लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 20 राज्यों के 91 सीटों पर मतदान जारी है, इस चरण में ध्रुवीकरण के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले पश्चिमी यूपी की 8 सीटों पर भी मतदान जारी है, हालांकि केन्द्र में सत्ता में काबिज बीजेपी के लिये परिस्थितियां पांच साल पहले जैसी नहीं है, आइये आपको बता हैं कि 5 साल में बीजेपी के लिये अहम हो गये हैं कौन से पांच फैक्टर।

ध्रुवीकरण पहले जैसा नहीं
2014 आम चुनाव में ध्रुवीकरण का माहौल था, क्योंकि तब हाल ही में मुजफ्फरनगर का दंगा हुआ था, सितंबर 2013 में हुए इस दंगे का असर पूरे यूपी में दिखा था, इस दर्दनाक घटना में करीब 60 लोगों की मौत हुई थी, हजारों लोग अपना घर छोड़कर दूसरे स्थानों पर रहने को विवश हुए थे। इस दंगे ने जाट-मुस्लिम समीकरण को पूरी तरह से बिगाड़ दिया, इसके साथ ही जाटव और गुर्जर समाज के लोग भी तत्कालीन सत्ता से नाराज हो गये थे, इस बार चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने क्षेत्र में सद्भावना यात्रा निकालकर माहौल को सुधारने की कोशिश की है।

डबल एंटी इन्कंबेंसी
2014 लोकसभा चुनाव में यूपी में अखिलेश यादव और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, बीजेपी दोनों जगह विपक्ष में थी, वो लोगों को सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने को कह रहे थे, यानी दोहरी एंटी इन्कंबेंसी थी, लेकिन इस बार केन्द्र और यूपी दोनों जगहों पर मोदी-योगी की सरकार है, हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि बीजेपी की सरकार आने से काम कराने में आसानी हुई है, लेकिन फिर भी कई ऐसी चीजें है, जिसे लेकर सरकार से शिकायत रहती ही है, वो फर्क डाल सकता है।

एकजुट विपक्ष
2014 में करीब-करीब सभी दल अकेले ताल ठोंक रहे थे, लेकिन इस बार यूपी में सपा-बसपा और रालोद एक साथ है, तो कांग्रेस अकेले ताल ठोंक रही है, विश्लेषकों के मुताबिक यूपी में महागठबंधन और बीजेपी की सीधी लड़ाई बताई जा रही है, जो कि 2014 में बिल्कुल नहीं थी।

मौजूदा सांसदों के खिलाफ गुस्सा
2014 में बीजेपी 80 में से 71 सीटें जीतने में सफल रही थी, इस बार लोगों को मौजूदा सांसदों के खिलाफ भी गुस्सा है, यानी पार्टी को एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ सकता है, हालांकि बीजेपी ने इसे कम करने के लिये कुछ सांसदों के टिकट काट दिये हैं, तो कुछ की सीटें बदली गई है।
दलित-मुस्लिम नेताओं की रणनीतिक चुप्पी
भले पिछले कुछ दिनों से बीजेपी के नेता अपने भाषणों के जरिये ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हों, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुस्लिम और दलित नेताओं ने रणनीतिक तौर पर चुप्पी साध रखी थी, जो कुछ और ही इशारा कर रहा है।

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