New Delhi, May 10 : बिहार में चुनाव अब ‘डायनासोर’, ‘शुतुरमुर्ग’ और ‘नाली के कीड़े’ के सहारे लड़ा जा रहा है। नेता मुद्दाविहीन हो गए हैं। विरोधी की आलोचना के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। इसलिए जानवरों और कीड़ों का सहारा लेना पड़ रहा है। जिस बिहार के वैशाली को लोकतंत्र की जननी होने का गौरव हासिल हैं, जिस बिहार ने संविधान सभा का अध्यक्ष दिया, जिसके आधार पर राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं, उसी बिहार के कतिपय राजनेता सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और शिष्टाचार को तहस-नहस कर रहे हैं। चुनाव में गली के आवारा लड़कों की भाषा का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है।
यह माना जाना चाहिए कि जो राजनेता डायनासोर, शुतुरमुर्ग और नाली के कीड़े जैसे शब्दों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में कर रहे हैं, वे जनता से कटे हुए और हवा में लटके हुए नेता हैं।
इसलिए वे अपनी खीझ निकाल रहे हैं। अगर उनके पास विकास का कोई वैकल्पिक मॉडल होता, बिहार की सूरत संवारने की कोई योजना होती तो वे जरूर उसपर बात करते।
बिहार के बाहर भी स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं है। कमोबेश पूरे देश मे गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल विरोधियों के लिए किया जा रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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