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Opinion – अब की 2019 के लोकसभा चुनाव में जातीय वोट का गुरुर टूट रहा है

राष्ट्रीय सुरक्षा की चर्चा हर कहीं। बालाकोट की एयर स्ट्राईक और अभिनंदन की शानदार वापसी सिर चढ़ कर बोल रही है।

New Delhi, May 12 : गोरखपुर से लखनऊ लौटा हूं। अब की कार ले कर नहीं गया। ट्रेन से गया , बस से लौटा । टैम्पो , रिक्शा , बैट्री रिक्शा , पैदल भी चला। गांव , कस्बा , शहर हर कहीं अपरिचित लोगों से ही बात की। सामान्य आदमी बन कर टोह ली । शादी , तिलक और अन्य आयोजनों में हर कहीं चुनाव की ही चर्चा। गोरखपुर , बांसगांव , देवरिया , कुशी नगर , महराजगंज , संत कबीर नगर , बस्ती , अम्बेडकर नगर , अयोध्या , बाराबंकी , गोंडा हर कहीं एक ही बात। कुल हासिल यह है कि भाजपा तो नहीं लेकिन नरेंद्र मोदी हर जगह जीत रहा है। लोग उम्मीदवार नहीं जानते , मोदी और कमल का चुनाव निशान जानते हैं । क्या अनपढ़ , ग़रीब , पढ़े-लिखे , मध्यम वर्ग , निम्न वर्ग , अमीर वर्ग हर कहीं एक ही बात , एक ही मकसद। लिख कर रख लीजिए गठबंधन का जातियों का गुरुर और नशा बुरी तरह टूट रहा है । मुस्लिम वोट में भी सेंधमारी साफ़ दिख रही है। पूरे माहौल में मौसम ही नहीं , नरेंद्र मोदी की भी गरमी तारी है।

राष्ट्रीय सुरक्षा की चर्चा हर कहीं। बालाकोट की एयर स्ट्राईक और अभिनंदन की शानदार वापसी सिर चढ़ कर बोल रही है। इस चर्चा में सपा-बसपा गठबंधन दुबक-दुबक जा रहा । कांग्रेस का तो कोई नामलेवा भी नहीं। अभी तक लोग राहुल गांधी का नाम लेते ही हंसने लगते थे। अब प्रियंका का नाम भी सुन कर लोग हंस देते हैं । उज्ज्वला योजना की गैस , शौचालय , पक्का मकान , मुद्रा योजना , किसानों के खाते में पैसा ,निरंतर बिजली और चमकती सड़क भी लोगों को दिख रही है । नतीज़तन पूर्वी उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ , रायबरेली को छोड़ कर बाक़ी तमाम सीटों पर मोदी ही मोदी है। एक अमेठी की तसवीर साफ़ नहीं है । कि कौन जीतेगा ।

बहरहाल , अब तक की चुनावी तसवीर देख कर मैं बहुत अधिकार से कहना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी और उन के कमल को 60 प्लस सीट मिल रही है । जब कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी और उन के कमल को 285 सीट के आस-पास । एन डी ए को 350 प्लस । यह मेरा फ़ाइनल आकलन है । चाहिए तो कहीं लिख कर रख लीजिए।

कहीं यह आकलन इधर-उधर हो तो मुझे शीशा दिखाने के काम आ सकता है आप के । फ़िलहाल का मेरा बरसों का चुनावी अनुभव और आकलन यही है। नोट कर लीजिए एक बार फिर कि यह मेरी इच्छा नहीं , जमीनी आकलन है। क्यों कि बहुत से मित्र अपनी इच्छा को ही फाइनल मान रहे हैं । मैं इसे उन की दमित इच्छा कहता हूं । एक बात और नोट कर लीजिए कि बीते 2014 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का नशा टूटा था। अब की 2019 के लोकसभा चुनाव में जातीय वोट का गुरुर टूट रहा है ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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