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Opinion- 2014 में मुस्लिम वोट बैंक का नशा टूटा था, 2019 में जातिय वोट बैंक का नशा चकनाचूर हो गया

मेरे निष्पक्ष आकलन को देखते हुए वह आंख मूंद लेते थे और अपनी जहरीली जुबान में मुझे अपमानित करने के लिए भाजपाई होने का सर्टिफिकेट सौंपते रहते थे।

New Delhi, May 23 : अपनी शानदार सरकार चुनने के लिए देश की जनता को बहुत बधाई ! मुझे इस बात का भी हर्ष है कि मेरे सारे आकलन पूरी तरह सही साबित हुए हैं। ख़ास कर जब मैं निरंतर लिख रहा था , विभिन्न टी वी चैनलों पर कह रहा था कि 2014 के आम चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का नशा टूटा था और इस 2019 में जातीय वोट बैंक का नशा टूट जाएगा।

संयोग से अब यह जातीय नशा भी टूट गया है। गठबंधन का जातीय गुरुर टूट कर चकनाचूर हो गया है। हां , एक बहुत खतरनाक बात ज़रूर हो गई है इस चुनाव में कि मुस्लिम समाज से भी ज़्यादा कट्टर यादव समाज ने अपने को बना लिया है। यह देश और समाज के लिए शुभ नहीं है। यादव समाज के लिए उन की यह कट्टरता कैंसर बन जाएगी , अगर यादव समाज अपने को दुरुस्त नहीं करता। कट्टरता किसी भी देश और समाज के लिए किसी सूरत हितकर नहीं है।
अपने कुंठित , बीमार और जहरीले दोस्तों के लिए अब क्या कहूं , समझ नहीं आता। मेरे निष्पक्ष आकलन को देखते हुए वह आंख मूंद लेते थे और अपनी जहरीली जुबान में मुझे अपमानित करने के लिए भाजपाई होने का सर्टिफिकेट सौंपते रहते थे।

दिक्कत यह भी है कि यह जहरीले , कुंठित और बीमार दोस्त अपना आकलन नहीं , अपनी इच्छा सब के ऊपर थोप कर खुश हो लेने की बीमारी से ग्रस्त हैं। जनता से , ज़मीन से पूरी तरह कटे हुए यह बीमार लोग अपने से असहमत लोगों से भी कभी बात नहीं करते , किसी से नहीं मिलते। अपने सीमित कुएं में कैद लोग अपने समानधर्मा बीमार समूह में ही मिलते-जुलते , अपनी इच्छा को ही देश का निर्णय बता कर खुश हो लेते हैं। तो यह देश का नहीं , इन लाइलाज लोगों का दुर्भाग्य है।

दुर्भाग्य यह भी है कि यह कुंठित , बीमार और जहरीले लोग खुद को लेखक , कवि , पत्रकार और कलाकार मानते हैं। मुझे अपने इन बीमार दोस्तों से पूरी तरह सहानुभूति है। प्रार्थना और कामना करता हूं कि यह अपने अंतर्विरोध से जल्दी फुर्सत लें । अपनी बीमारी से छुट्टी लें। अपनी जहरीली मानसिकता और जहरीली जुबान से मुक्त हों । अपनी असहमति के साथ ही जनादेश का सम्मान करना सीखें। जनता की भावनाओं को समझें। नरेंद्र मोदी से लड़ते-लड़ते देश से लड़ने लगे । देश से लड़ते-लड़ते जनता से लड़ने लगे। यह ठीक बात नहीं है । ज़रूरत है कि ऐसे बीमार लोग पहले ख़ुद से लड़ें और अपनी असहमति के साथ जनता को , देश को समझने की कोशिश करें। उन की बीमारी में लाभ मिलेगा , नुकसान नहीं। नरेंद्र मोदी और भाजपा से अपनी लड़ाई जारी रखिए। लेकिन जनता से मिल कर , ज़मीन पर उतर कर। इस लिए भी कि गगन विहारी और जहरीली बातों से आप की विश्वसनीयता पूरी समाप्त हो चुकी ही। आप का अस्तित्त्व खत्म हो चुका है। जनता के बीच उतर कर , अपने को जीवित कर सकिए तो बहुत बेहतर।

(वरिष्ठ पत्रकार  दयानंद के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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