New Delhi, Jun 04 : यदि किन्हीं दो जातियों के बीच कभी ‘तेजाबी संबंध’ रहा हो तो उसका असर जल्दी नहीं जाता। यानी, यदि वे दोनों कभी मिलकर भी चुनाव लड़ेंगे तो आम तौर पर केमिस्ट्री से गणित पराजित हो जाएगा। 2016 में पश्चिम बंगाल में यही हुआ था। इस बार उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ। बिहार में भी फसल काट लेने वाले समुदाय यदि अपनी फसल बचाने की कोशिश में लगे समुदाय से चुनावी तालमेल भी करें तो उसका कोई लाभ नहीं होगा।
इस कहानी का यही मोरल है कि राजनीतिक दल विभिन्न जातियों के बीच के झगड़े को न बढ़ाएं। बल्कि उसे कम करने की कोशिश करें।
पर ऐसा नहीं हुआ। सी.पी.एम. को 23 सीटें ही मिल सकी जबकि कांग्रेस 43 सीटें जीत कर प्रमुख विपक्षी दल बन गया।
उत्तर प्रदेश में इस बार के लोक सभा चुनाव में बसपा को 10 सीटें मिल गई जबकि सपा पांच पर ही अटक कर रह गई।
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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