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Opinion – मोदी के रवैए में सुधार

इस बैठक का इस्तेमाल एक-दूसरे पर हमला करने की बजाय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए किया जाए तो बेहतर होगा।

New Delhi, Jun 14 : चार दिन पहले मैंने लिखा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना आत्म-सम्मान क्यों घटा रहे हैं ? उन्हें शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेना है और उन्हें किरगिजिस्तान की राजधानी बिश्केक जाना है तो क्या यह जरुरी है कि वे पाकिस्तान की हवाई-सीमा में से उड़कर जाएं, जैसे कि पूर्व विदेशमंत्री सुषमा स्वराज 21 मई को गई थीं? सुषमा और मोदी को इस सुविधा के लिए इमरान खान की सरकार से निवेदन करना पड़ा है।

पाकिस्तान की सरकार ने मेहरबानी दिखाई और मोदी को अपनी हवाई सीमा में से अपने जहाज को ले जाने की अनुमति दे दी ताकि वे अपना आठ घंटे का सफर चार घंटे में ही कर सकें। यदि वे ओमान और ईरान होकर जाते तो उन्हें आठ घंटे लगते। मैंने अपने लेख में नरेंद्र भाई से यही पूछा था कि एक तरफ तो वे इमरान के बातचीत के हर प्रस्ताव को ठुकरा रहे हैं, पाकिस्तान से व्यापार का विशेष दर्जा उन्होंने खत्म कर दिया है, दक्षेस के इस सदस्य को अछूत बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं और अपने चार घंटे बचाने के लिए उसके आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। कल मुझे मोदी के और मेरे दो-तीन साझा मित्रों ने दोपहर को फोन करके बताया कि मोदी ने पाकिस्तान को कह दिया है कि वे उसके हवाई मार्ग का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

क्या खूब ! यह हुई किसी भी नीति की एकरुपता ! लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि आज और कल बिश्केक में मोदी और इमरान के बीच कोई संवाद नहीं होगा। न हो तो न हो इससे शांघाई-देशों का कुछ बिगड़नेवाला नहीं है लेकिन उन शेष छह देशों पर इसका क्या कोई अच्छा असर पड़ेगा ? मुझे कुछ मित्रों ने यह भी कहा कि मोदी इसलिए पाकिस्तान की हवाई-सीमा में से भी नहीं जा रहे हैं कि उन्हें अपनी सुरक्षा की भी चिंता है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा। फिर भी मैं सोचता हूं, जैसे कि गत माह बिश्केक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच संक्षिप्त शिष्टाचार भेंट हो गई, वैसी भेंट दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच हो जाए तो इसे नाक का सवाल नहीं बनाया जाना चाहिए।

इस बैठक का इस्तेमाल एक-दूसरे पर हमला करने की बजाय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए किया जाए तो बेहतर होगा। मुझे यह भी समझ में नहीं आता कि शांघाई सहयोग संगठन में अफगानिस्तान का न होना कहां तक ठीक है ? अफगानिस्तान तो संपूर्ण मध्य एशिया और भारत के बीच एक जबर्दस्त और महान सेतु है। अफगानिस्तान को इसका सदस्य बनाया जाना बहुत जरुरी है। यदि सार्क, बिम्सटेक और एससीओ में से चीन और रुस को हटा दिया जाए तो यही क्षेत्र मेरी कल्पना का महान आर्यावर्त्त है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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