New Delhi, Jun 25 : मैं दावे से कह सकता हूँ कि जितने भी रिपोर्टर और एंकर पॉपकॉर्न की तरह उछल रहे है, ” चमकी ” बुखार के बारे में कोई रिसर्च करके स्पॉट पर नहीं गए हैं। अगर गए होते तो अस्पतालों के वॉर्ड और ICU में चिल्ला कर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करने की बजाए उन गाँवो में गए होते जहाँ से इस बीमारी की शुरुआत होती है।
ऐंसिफ़िलाइटिस नाम की इस बीमारी का मृत्यु दर कितना है ज़रा इन महाज्ञानियों से पूछिये और ये भी कि ये पीड़ित बच्चे किस स्टेज पर इन अस्पतालों में लाए जाते हैं? पेंडेमिक का स्वरूप ले चुकी इस बीमारी में ICU कम नहीं पड़ेंगे तो और क्या होगा? उस पर आप उसी ICU में घुस कर डॉक्टर को काम करने से बाधित कर रहे हैं। ये किस प्रकार की रिपोर्टिंग है भाई??
मुद्दा ये होना चाहिए था कि जब हर साल उन इलाक़ों में ये बीमारी इसी तरह फैलती है तो इसके रोकथाम के लिए सरकार द्वारा क्यों कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए? उन इलाक़ों की हालत क्या है? क्या वजह है कि लोग समय पर अपने बच्चों को इलाज के लिए लेकर नहीं पहुँचते?
बिहार में चमकी बुखार का इतिहास कुछ इस तरह है।
2014 में 355
2015 में 225
2016 में 102
2017 में 54
2018 में 33
2019 में अब तक 138 बच्चो की मौत हो चुकी है ।
दरअसल चुनावी सरगर्मी खत्म होने के बाद टी आर पी ” उगाहने ” में चैनल वालो को परेशानी हो रही थी इसलिए ऐसी मूर्खतापूर्ण हरकत दिल्ली के पत्रकारों ने की । और कोई मुझे यह नही बताए कि यह भी रिपोर्टिंग का एक डायमेंशन है । मैंने भी अज्ञानता और मजबूरीवश टी आर पी के लिए खुद की जमीर को उल्टा लटकाया था जिसे सोचकर खुद शर्मिंदा होता रहता हूँ । लेकिन दिल्ली के पत्रकार तो पत्रकारिता के मसीहा हैं उनसे गलती कैसे हो गयी ?
(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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