New Delhi, Aug 01 : ऑन लाइन खाना ला रहे शख़्स के धर्म को लेकर उठे विवाद पर दो आवाज़ें उठीं। दोनों एक दूसरे से तेज़,एक दूसरे से तीखी और एक दूसरे से तार्किक। दोनों पक्ष एक दूसरे से सवाल पूछ रहे हैं। मसला धर्म को लेकर उठा तो सवाल झटका और हलाल तक भी जा पहुँचा। पूछा गया कि अगर खाने का धर्म नहीं होता तो फिर हलाल और झटका क्यों पूछा जाता है।
ख़ैर,मैं बस ये पूछ रहा हूँ कि ये अविश्वास पैदा कैसे हुआ? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?
मुझे अच्छे से याद है, बहुत ज़िम्मेदारी से लिख रहा हूँ हमारे गाँव के अमूमन हर घर में अलग मज़हब के लोगों के लिए अलग बर्तन होता था।
ये सब जानते थे। इसमें कोई ढकीं और छिपी बात नहीं थी। ये दोनों तरफ़ से होता था। इसको लेकर किसी को बुरा मानते मैंने नहीं देखा। जानते हैं क्यों?
दोनों पक्ष एक दूसरे की मान्यताओं की क़द्र करता था। एक दूसरे पर भरोसा था।
(चर्चित टीवी पत्रकार आर सी शुक्ला के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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