एक बात तो तय है कि हमने राजनीति को माध्यम नही बनाया बल्कि उसे सर्वोच्च पवित्र और सरशक्तिमान मान बैठे । राजनीतिज्ञों को हमने विधाता मान लिया । इसलिए हमें लोग कीड़ा मकोड़ा समझते हैं।
New Delhi, Sep 21: एक यह तस्वीर देखिए ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को जनता कैसे एक प्रधानसेवक की हैसियत से देखता है और वहां के प्रधानमंत्री भी वैसा ही बर्ताव करते हैं । अपने तसव्वुर में एक उस दृश्य को लाइये जब रांची में बेटी की हत्या से दुखी एक बाप राज्य के मुखिया के पास जाता है और उसे सार्वजनिक रूप से भद्दी भद्दी गालियां सुननी पड़ती है और धक्का मारकर मंच से खदेड़ दिया जाता है ।
सम्भव हो तो सोशल मीडिया पर एक वीडियो ढूंढिए । ट्वीटर पर एक वीडियो वायरल है जिसमे एम्बुलेंस को ट्रैफिक पुलिस ने रोक दिया है ।एम्बुलेंस में घायल एक बच्ची है । एम्बुलेंस का ड्राइवर बेचैन है और वह ट्रैफिक पुलिस से पूछता है कि अगर इस बच्ची की मौत ही जाती है तो इसका जिम्मेवार कौन होगा ? हालांकि यह वीडियो ढाई साल पुराना है लेकिन इतने रिट्वीट और शेयर हुआ है तीसरे नम्बर पर ट्रेंड कर रहा है। दो दृश्य तसव्वुर में और लाइये फेसबुक पर भी आपको यह मिल जाएगा । एक लड़का अपने कपड़े में खून का रंग लगाकर नाटक कर रहा है कि कोई उसे बचाये । सैकड़ो गाड़िया, एम्बुलेंस , बाइक ,राहगीर वहाँ से गुजरते हैं लेकिन किसी को गरज नही कि घायल की मदद करे।
और अंत मे , झारखंड के सूचना और जनसंपर्क विभाग ने एक विज्ञापन निकाला है । उन्हें ठेके पर तीस पत्रकार चाहिए जो सरकार की योजनाओं का बखान करे । उसे अपने अखबार में छापे या अपने चैनल पर दिखाए । लब्बोलुआब यह कि पत्रकार अपनी जमीर 15 हजार रुपये में बेच दे और उस 15 हजार को पाने के लिए अपने संपादक से भी चिरौरी करे कि बखान को छाप दिया जाए । क्योंकि शर्त यही है कि छपेगा तभी माल मिलेगा ।
तकलीफ होती है कि हमारी नैतिकता कहाँ तक गिरेगी । हमारे मूल्य कितने बरबाद होंगे । हमारी नागरिक जिम्मेवारियां को हम कब निभाएंगे । केवल अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे या कर्तव्यों के लिए भी आपाधापी करेंगे । एक बात तो तय है कि हमने राजनीति को माध्यम नही बनाया बल्कि उसे सर्वोच्च पवित्र और सरशक्तिमान मान बैठे । राजनीतिज्ञों को हमने विधाता मान लिया । इसलिए हमें लोग कीड़ा मकोड़ा समझते हैं। जो उदाहरण हैं उससे पता चलता है कि कैसा है हमारा समाज , कैसे हैं हमारे राजनेता , कैसे हैं पत्रकार और कैसे हैं आम लोग।
(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किस्लय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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