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जो नेता पद पाने के लिये पार्टी की तिलांजलि दे देते हैं, वो जनता के प्रति खाक वफादार होंगे

यह सब देखकर लगता है कि राजनीति में सिद्धांत , निष्ठा , स्पष्टता , विश्वसनीयता , विचारधारा सबकुछ सरयू नदी में प्रवाहित हो गए ।

New Delhi, Nov 15 : भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता सत्येंद्र मल्लिक को बहुत से लोग नही जानते होंगे । पेशे से शिक्षक सत्येंद्र मल्लिक अपनी सायकिल से बीजेपी की प्रेस विज्ञप्ति अखबारों के दफ्तर तक पहुचाते थे । हमेशा नम्र और मुस्कराकर अभिवादन करते । इतने समर्पित कार्यकर्ता ने कभी किसी पद के लिए हंगामा नही किया । इसी पार्टी में एक बुजुर्ग कार्यकर्ता ( अफसोस कि मुझे उनका नाम पता नही ) पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में बड़ा सा पार्टी का झंडा लेकर पहुच जाते और चुपचाप झंडे को डोलाते रहते ।

कांग्रेस के एक नेता हैं मोजिब ( पूरा नाम शायद मुजीबुर्रहमान है ) । झक सुफेद कपड़ो में , मुह में पैन की गिलौरी दबाये , हमेशा मुस्कुराता चेहरा । कांग्रेस जब गर्दिश में है तब भी समर्पित कार्यकर्ता की तरह कांग्रेस का झंडा ढो रहे है । इन सबने कभी भी किसी पद को लेकर पार्टी नेताओं के सामने गिड़गिड़ाया नही । चुपचाप अपने कर्तव्य पालन करते रहे। आज जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तक टिकट नही मिलने के बाद भागमभाग कर रहे है तब इनकी याद आना स्वाभाविक है। टिकट के लिए जिस तरह ये पार्टी बदल रहे हैं इनके सामने राजनैतिक मूल्य दो कौड़ी का हो गया है । हम भी लाचार होकर इन्ही में से किसी को चुनने को विवश हैं । आखिर ये अपनी पार्टी में इतने बड़े पदों पर कैसे पहुच जाते हैं जिनकी विश्वसनीयता जीरो है । किस मुह से ये अपने पूर्व पार्टी को चुनाव के दौरान बखिया उधेड़ते है । जिसकी निष्ठा महज टिकट तक सीमित है वह जनता के प्रति कहाँ से निष्ठावान होगा ।

कांग्रेसी इस मामले में अव्वल साबित हो रहे है । कांग्रेस के तीन पूर्व और एक वर्तमान अध्यक्ष टिकट के लिए पार्टी को तिलांजलि दे चुके हैं । आरजेडी के दो पूर्व अध्यक्षो ने पाला बदल लिया । जेडीयू के एक अध्यक्ष पार्टी को बाई बाई कर चुके हैं । बीजेपी के मुख्य सचेतक की भी आत्मा तब जगी जब उन्हें टिकट नही मिला । छोटी या स्वयंभू पार्टी अध्यक्षों की तो बात ही अलग है। वामपंथी विचारधारा वाले नौजवान संघर्ष मोर्चा ( शायद यही नाम है ) के भानु प्रताप सिंह ने विपरीत विचारो वाली पार्टी में ही विलय कर दिया । कई विधायक अपनी पार्टी छोड़ दूसरे दल में ठौर तलाश लिए । एक पार्टी कार्यकर्ता अपनी पार्टी के लिए लड़ने मरने को उतारू हो जाता है लेकिन उसीका रहनुमा पद के लोभ में सारी नैतिकता ताक पर रखकर टिकट के लिए उसके सामने दंडवत हो जाता है जिसे सड़क से लेकर सदन तक गालियां देता रहा। यह बीमारी झारखण्ड में अधिक है लेकिन है अखिल भारतीय। अब शिव सेना – एनसीपी – कांग्रेस प्रकरण जगहँसाई का कारण बने हुए हैं । लेकिन बबुआ से लगने वाले उद्धव ठाकरे और संजय राउत ताल ठोक रहे हैं कि मुख्यमंत्री उनका होगा ।

यह सब देखकर लगता है कि राजनीति में सिद्धांत , निष्ठा , स्पष्टता , विश्वसनीयता , विचारधारा सबकुछ सरयू नदी में प्रवाहित हो गए । संसद या विधानसभाये इस व्यवस्था में शुचिता लाने के लिए कुछ नही करेंगी क्योंकि उसके सदस्य ही भ्रष्टाचरण के लाभुक हैं ।चुनाव आयोग में कोई टी एन शेषन नही है जो इसका कुछ तोड़ निकाले । इसलिए सुप्रीमअदालत ही है जहाँ से जनता को कुछ उम्मीद है ।
हमे सत्येंद्र मल्लिक और मोजिब जैसे राजनीतिज्ञ ही चाहिए जिन्हें लेकर जनता को कोई संदेह तो नही रहता है कि आज साथ हैं कल रहेंगे या नही।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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