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Opinion- अफीम वाला पुलिसिया न्याय

आपकी बेटी न कल सुरक्षित थी, न आज और न आज के बाद। आप बांधते रहिए पुलिसवालों की कलाई पर राखियां, करिए फूलों की बरसात।

New Delhi, Dec 07 : आपके पास विकल्प है क्या? देखिए रोड पर फैसला होते हुए। क्यों? क्योंकि आंख के बदले आंख और खून का बदला खून। हिंदुवादी एकदम से शरिया मानने पर उतारू हैं। और जो ओबैसी जैसे राजनीतिक गुंडे हैं वो शरिया छोड़ शांति की बात करने लगे हैं। देश एक अलग हिस्टीरिया में है। मार दो…फांसी लटका दो…चौराहे पर टांग दो रेपिस्टों को। मैं भी आपके साथ हूं। आइए चौराहों पर टांगना शुरु कर दें। भीड़ पीट-पीट कर मार डाले वहशियों को। पर कोई तो तय करेगा। फैसला करेगा कि ये वहशी हैं। कौन करेगा ? मुल्ला, पंडित, राजा, रंक ? कौन करेगा कि फलां रेपिस्ट है? हिंदुवादी संगठन या मुसलमानों का संगठन ?

इसके लिए आपसे ज्यादा पढ़े लिखे और सभ्य लोग अदालतों में बैठे हैं। और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता आप कौन है आपकी औकात क्या है। वो फैसला देते हैं। वो आपकी और हमारी तरह जाहिल नहीं हैं। जब ब्यूरोक्रेसी और पुलिस इस देश की अपने राजनीतिक आकाओं की गोद में बैठी है। मीडिया लाउडस्पीकर हो चुका है देश में, तो वो काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक। सांस लेने की फुर्सत नहीं हैं उन्हें। और बड़े शातिर तरीके से इस पवित्र संस्थान को भी बर्बाद कर देने की शुरुआत हो चुकी है। पहले पथभ्रष्ट बताओ। लोगों को विश्वास न्याय व्यवस्था से डिगाओ। फिर उसे खत्म भी खत्म कर दो। ये खेल सिर्फ सत्ता का नहीं है बल्कि गंदे और घटिया राजनीतिज्ञों की पूरी जमात का है। वो आपको अफीम चटाते रहेंगे ऐसे ही सड़कों पर एनकाउंटर करवा कर और आप अफीम चाट कर भूल जाते रहिए इस बात को कि ये कोई मुकम्मिल राह नहीं है।

आपकी बेटी न कल सुरक्षित थी, न आज और न आज के बाद। आप बांधते रहिए पुलिसवालों की कलाई पर राखियां, करिए फूलों की बरसात, पर जब कल ये अपनी काहिली छुपाने के लिए आपना निकम्मापन ढंकने के लिए आपके हमारे बच्चों को उठाएंगे और कत्ल करेंगे तब अफीम का नशा उतरे शायद। इसलिए कहता हूं आप आज देखिए मैं कल देखूंगा। कल जो बहुत खतरनाक है हैदराबाद की इस घटना से आगे।
अब आपमें से कई लोगों का मन झुलस जाएगा। मैं इस देश का दुश्मन और समाज का सबसे गलीज आदमी हो जाउंगा। फर्क नहीं पड़ता। राष्ट्रवाद का मुलम्मा चढ़ाकर पुलिस को पाशविकता की इजाजत नहीं दी जा सकती। कम से कम लोकतंत्र में तो नहीं। कल कई लोगों ने पूछा तो आतंकियों को का क्या करें? अफजल गुरु की फांसी पर रोने वाले लोगों की तरह हैं आप। भाई मेरे अक्ल है क्या तुम में? बुरहान वानी क्रॉस सैन्य ऑपरेशन में मारा गया। और सैन्य ऑपरेशन की वीडियो रिकॉर्डिंग्स होती हैं। इंटेलिजेंस इनपुट तगड़े होते हैं। ऐसा नहीं है कि गलत एनकाउंटर वहां नहीं होते पर वो ऑर्गनाइज्ड क्राइम है। स्टेट के खिलाफ जंग है। अफजल गुरू को फांसी मिलनी ही चाहिए थी। क्योंकि उसकी संलिप्तता आतंकी हमले में सुप्रीम कोर्ट में सिद्ध हुई थी। लेकिन रेप के आरोप में पुलिस तुम्हें उठाकर भीतर कर सकती है। और भाई साहब पुलिस के सामने कबूल तो आपके अब्बा भी लेंगे फिर आप किस खेत की मूली हो?

जिस देश में पुलिस रेप पीड़िता को उसके परिवार को रिपोर्ट लिखाने आने पर भगा देती हो (ऐसी एक नहीं कई घटनाएं हैं खोज लीजिए), जिस देश में पुलिस या एसआईटी एक पूर्व सांसद के ऊपर रेप का आरोप लगाने वाली लड़की को जेल में बंद कर देती हो, उस देश की पुलिस से अगर आप उम्मीद करते हो कि न्याय व्यवस्था की राह वही निकाल रही है तो आपको प्रणाम है। चिन्मयानंद मामले में पीड़ित लड़की को एसआईटी ने ब्लैकमेलिंग का केस दर्ज़ करके अंदर नहीं किया था, बल्कि उस बेटी को हड़काने, दबाने और डराने की तैयारी थी, जो यकीन मानिए आज नहीं तो कल सफल होगी।
इस देश की न्याय व्यवस्था को कोसना बंद करिए। नेता अपने समर्थकों से और भाड़े पर रखे गए सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं से ये काम करवाते हैं। क्यों क्योंकि एक अधीरता का वातावरण बने। और वो व्यवस्था जो इनके नाड़े ढीले कर देती है पहले भ्रष्ट करार करवाई जाए और फिर खत्म कर दी जाए। आप कहेंगे कहां काम हो रहा है, केसेज पेंडिंग हैं…। केस पेंडिंग हैं क्योंकि वकील और आपकी पूजनीय पुलिस है। जो तथ्यों को लटकाती हैं। पेंच फंसाती है। और न्याय व्यवस्था इनजस्टिस करने के लिए नहीं बैठी है। किसी पेंच के साथ वो किसी को इसलिए फांसी पर नहीं लटका सकती क्योंकि आप चाहते हैं।

कल एक हिंदुवादी लड़के ने लिखा कि देश में फलां-फलां साल के आंकड़े बताते हैं कि , फलां-फलां साल में इतने रेप हुए और इसमें 95 फीसदी मामलों में मुस्लिमों ने हिंदू लड़कियों का रेप किया। मैं कहता हूं कि पहली फुर्सत में ऐसे लोगों को पकड़िए। ऐसे लोगों की पूरी फौज है जो सोशल मीडिया को गंदा कर रही है। ऐसे लोग दोनों तरफ हैं। मुस्लिमों में भी हैं। जो ज़हरीले ओबैसी को शेयर करते हैं। रही बात हमारी सोच की, अपन ऐसे ही सोचेंगे। क्योंकि जिस माहौल को आप आज लिख रहे हैं कल वो इतिहास बन जाएगा। नज़ीर बना तो फॉलो किया जाएगा। पुलिस किसी जघन्य कांड में चार-पांच लोगों को आपके हमारे घरों से उठाएगी। और ठोंक देगी। उसमें किसी का भी बेटा हो सकता है। और भीड़ तब भी ऐसे ही ढोल नगाड़े बजाते नाचेगी और आपका रुदन कहीं नहीं सुना जाएगा।
नेताओं की कॉलर पकड़िए पूछिए उनसे उनका निकम्मापन कब टूटेगा? कब फास्ट ट्रैक कोर्ट बनेंगी? कब कानून बनेगा कि तय वक्त में फांसी की सजा मुकर्रर हो हैवानों के लिए। फांसी की सजा जब तय है तो एक्जेक्यूशन में देरी क्यों? ये एक्जेक्यूशन ये भावानात्मक उबाल समय के लिए बचा कर रखते हैं ये लोग। वक्त आएगा तो तीर कमान से निकलेगा। दिल्ली में महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल के पेट में दर्द उठा हैदराबाद मामले के बाद। वो जंतर-मंतर पहुंच गईं। क्या 2012 के बाद से दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित कर दी उन्होंने? क्या उन्हें बोलने का हक है? लेकिन मोहतर्मा बोलती हैं। हैं जी हम जो बैठेंगे जी, पिछली बार हमने अनशन किया निर्भया मामले में तो पॉक्सो कानून बना, फांसी की सजा हमने तय कराई जी…इस बार फिर हम कहते हैं फांसी का कानून बनाओ जी…..ये चिल्लर नौटंकियां आपकी हमारी भावनाओं के जेबे फाड़ती रहेंगी। इसलिए कहता हूं ठोस बात करिए।
पुनश्च: रही बात चौराहों पर लाशें टांगने की। ज़रा खुद से पूछिए क्या आप अपने बच्चे को ये दृश्य दिखाना चाहेंगे क्या? और मत भूलिए इसी भीड़ तंत्र ने ईसा को भी सूली पर चढ़ा दिया था। और मत भूलिए कि लाशों का ढेर चंड अशोक तक नहीं झेल पाया था।

(टीवी पत्रकार राकेश पाठक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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