New Delhi, Dec 19 : अब तो यह बर्दाश्त करने की बात नहीं है। इस देश के बहुसंख्यक मुसलमान हिंदुओ को देखना नही चाहते । नागरिकता बिल हो या राम मंदिर का मामला , उन्होंने पूरे देश में जो रवैया अपनाया है उसके बाद तो मुसलमानों के प्रति देश मे उबाल है । आखिर गैर मुसलमानों से उनकी क्यों फट रही है? देश के बाहर के हिंदुओ की शरणस्थली भारत नही बनेगा तो क्या वे 52 देश बनेंगे जहां हिंदुओ के प्रतीकों को भी ध्वस्त किया जा रहा है । राम मंदिर अयोध्या में नही बनेगा तो क्या मक्का में बनेगा ? शाह जी , मोदी जी आप निश्चिंत रहिये अब 2024 ही नही 2029 के बाद भी आपका ही राज रहेगा । इसलिए खुलकर इन देशद्रोहियों का चूतर लाल कीजिये और जो हिंसा फैला रहे हैं उनकी नागरिकता छीनकर उन्हें उन 52 देशों में खदेड़ दीजिए । इस देश को लेबनान मत बनने दीजिए इसे इजराइल बनाइये । मुट्ठीभर लोग है जो आग लगा रहे हैं । जेएनयू , जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मुसलमानीकरण खत्म कीजिये । बहुसंख्यक आबादी आपके साथ है।
लेबनान की कहानी
70 के दशक में लेबनान अरब का एक ऐसा मुल्क था जिसे ‘अरब का स्वर्ग’ कहा जाता था और इसकी राजधानी बेरूत को ‘अरब का पेरिस’। लेबनान एक प्रगतिशील , सहिष्णु और विविधता में एकता वाली संस्कृति का देश था । ठीक वैसे ही जैसे भारत है। लेबनान में दुनिया की बेहतरीन शिक्षण संस्थान थे जहाँ पूरे अरब से बच्चे पढ़ने आते थे और फिर वहीं रह जाते थे, काम करते थे, मेहनत करते थे। लेबनान की बैंकिंग दुनिया की श्रेष्ठ बैंकिंग व्यवस्थाओं में शुमार थी। पेट्रोल न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार और समृद्ध अर्थव्यवस्था थी।
लेबनान का समाज कैसा था इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 60 के दशक में बहुचर्चित हिंदी फिल्म An Evening in Paris दरअसल पेरिस में नहीं बल्कि लेबनान में फिल्माई गई थी। 60 के दशक के उत्तरार्ध में वहाँ जेहादी ताकतों ने सिर उठाना शुरू किया। 70 में जब जॉर्डन में अशांति हुई , तो लेबनान ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए दरवाज़े खोल दिए – _आइये, स्वागत है!_ 1980 आते-आते लेबनान की ठीक वही हालत हो गयी जो आज सीरिया की है। लेबनान की ईसाई आबादी को शरणार्थी बनकर घुसे जिहादियों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया में ISIS ने मारा। पूरे के पूरे शहर में पूरी ईसाई आबादी को क़त्ल कर दिया गया। कोई बचाने नहीं आया।
किसी समाज का एक छोटा-सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए तो फिर बाकी शांतिप्रिय सोसाइटी का कोई महत्त्व नहीं रहता। वे अप्रासंगिक हो जाते हैं। लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं सिर्फ 25-30 साल पुरानी है। लेबनान के इतिहास से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। और कोई सीखे न सीखे भारत को लेबनान के इतिहास से सीखने की ज़रूरत है। रोहिंग्याओं, बाँग्लादेशी घुसपैठियों और सीमान्त प्रदेशों में पल रहे जेहादियों से सतर्क रहने की ज़रूरत है। इतना ही नही देश के भीतर के इन द्रोहियों को भी सबक सिखाने की जरूरत है।
ऐसी ताकतों के विरूद्ध एकजुट होइये । जो जेहादियों की समर्थक हैं । और इनका समर्थन दे रही पार्टियों , संस्थाओ, औऱ इनसे जुड़े लोगों का बहिष्कार करिये।
चुप मत बैठिये। पढ़िए, समझिये और दूसरों को भी समझाइए।
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