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मकर संक्रांति में सूर्य के साथ बिहार में सियासत की दिशा अगर बदलने लगे तो हैरत में आने की जरूरत नहीं

साल 2017 में गर्मियों के वह दौर याद कर रहा हूँ, जब विपक्ष में बैठे सुशील मोदी लगभग हर दिन लालू परिवार से जुड़े संपत्ति के मामलों का खुलासा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये कर रहे थे।

New Delhi,  Jan 14 : राजनीति में भविष्यवाणी बड़ा जोखिम का काम है और अगर बात नीतीश कुमार के नाभि में छिपे रहस्य को समझने की हो तो कुंबले की फ्लिपर का सामना करने जैसा समझिए। बावजूद इसके आप ज्यादा नहीं तो नीतीश कुमार के चेहरे और उनके बॉडी लैंग्वेज से थोड़ा बहुत रिस्क वाला प्रिडिक्शन तो कर ही सकते हैं।

साल 2017 में गर्मियों के वह दौर याद कर रहा हूँ, जब विपक्ष में बैठे सुशील मोदी लगभग हर दिन लालू परिवार से जुड़े संपत्ति के मामलों का खुलासा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये कर रहे थे। विधान परिषद में कई बार ऐसे मौके आये जब तेजस्वी के ऊपर बेनामी संपत्ति और भ्रष्टाचार के आरोप पर सुशील मोदी नीतीश कुमार से उनकी पारदर्शी नीति पर सवाल पूछते थे। तब नीतीश कुमार का चेहरा भावहीन सा नजर आता था। चेहरे पर शून्यता का भाव लिए नीतीश ऐसे नजर आते थे जैसे कहने को बहुत कुछ था लेकिन सही वक्त का इंतजार कर रहे हों। हुआ भी ऐसा ही.. तय समय पर सबकुछ ऐसे बाहर आया जैसे पूरी कहानी स्क्रिप्टेड हो।

13 जनवरी 2020 को विधानसभा में जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव CAA और NRC पर नीतीश कुमार से सवाल पूछ रहे थे तब मुख्यमंत्री के चेहरे पर फिर से वही शून्यता वाला भाव नजर आया। नीतीश के साथ बैठे सुशील मोदी के लिए मैं इसे शुभ संकेत नहीं मानता। नीतीश कुमार को समझने वाले इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि अगर उन्हें सामने वाले की बात में दिलचस्पी या तथ्य ना दिखे तो वह हंसकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन अगर सामने से आ रही बातों पर नीतीश संजीदा हुए तो समझ लीजिए मन में कुछ चल रहा है।

वाकई नाभि के रहस्य को समझना मुश्किल है लेकिन जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा दिया था तब भी उसे समझते हुए जोखिम के साथ खबर को सबसे पहले साझा किया था। जुलाई 2017 की उस शाम को तेजस्वी यादव के एक करीबी व्यक्ति को जब मैंने अपना अनुमान बताया था कि सरकार जा रही है तो वह मुस्कुरा कर मेरे आकलन को खारिज कर गए थे लेकिन उसी रात 2 बजे जब 10 सर्कुलर आवास से तेजस्वी अपने विधायकों के साथ राजभवन मार्च करने वाले थे तब उन्हीं साहब ने मुझसे इक्तेफाक रखा। कई बार हम सही होते हैं.. ज्यादा बार गलत लेकिन मकर संक्रांति में सूर्य के साथ बिहार में सियासत की दिशा अगर बदलने लगे तो हैरत में आने की जरूरत नहीं।

(मेरे व्यक्तिगत विचार हैं.. इससे आप असहमति रख सकते हैं)

(पत्रकार शशि भूषण के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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