Categories: सियासत

Opinion – अब भी भूल-सुधार का मौका है

मुसलमानों को लगा कि कहीं सारा भारत ही असम न बन जाए। मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू भी डर गए।

New Delhi, Feb 08 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कल जो भाषण दिया, उससे भारत के मुसलमान संतुष्ट होंगे या नहीं, यह कहना मुश्किल है लेकिन यह मानना पड़ेगा कि उनका भाषण काफी प्रभावशाली, खोजपूर्ण और रोचक था। विपक्षी नेताओं ने भी कुछ तर्क अच्छे दिए लेकिन मोदी के सामने कोई भी टिक नहीं सका। भारत का विपक्ष कितना कमजोर है, यह कल की संसद की कार्रवाई देखने से पता चलता है।

सारी बहस का केंद्रीय मुद्दा था- नया नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर लेकिन विपक्ष सिर्फ आर्थिक धुन बजाता रहा। उसकी सारी ताकत देश को यह बताने में लगी रही कि सरकार ने नागरिकता का पटाखा इसलिए फोड़ा है कि जनता का ध्यान उसकी आर्थिक कठिनाइयों से मोड़ दिया जाए। यह तर्क या अनुमान ठीक हो सकता है लेकिन उसने नागरिकता कानून के विरुद्ध क्या ऐसे तर्क दिए हैं, जिन्हें हम अकाट्य कह सकें या जिन्हें सुनकर सरकार इस कानून में उचित संशोधन करने के लिए तैयार हो जाए ? प्रधानमंत्री का यह आश्वासन बिल्कुल समयानुकूल और सराहनीय है कि इस नए कानून से किसी भी भारतीय नागरिक (मुसलमान भी) को कोई नुकसान नहीं होनेवाला है।

लेकिन मैं पूछता हूं कि यही बात मोदी और अमित शाह मुसलमान नेताओं को बुलाकर उनके गले क्यों नहीं उतारते ? देश में उगे दर्जनों शाहीन बागों में जाकर भाजपा और संघ के लोग प्रदर्शनकारियों से सीधा संवाद क्यों नहीं करते ? जिन सांसदों ने इस कानून के पक्ष में वोट दिया है, क्या उन्होंने ज़रा भी सोचा होगा कि यह इतने गहरे असंतोष का कारण बन जाएगा और यह अधमरे विपक्ष में जान डाल देगा ?

ऐसा इसलिए हुआ है कि असम में 19 लाख लोगों की नागरिकता अधर में लटक गई है। मुसलमानों को लगा कि कहीं सारा भारत ही असम न बन जाए। मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू भी डर गए, क्योंकि असम में नागरिकता सूची के बाहरवालों में लाखों हिंदू हैं और वे मुसलमानों से कहीं ज्यादा हैं। पड़ौसी देशों के शरणार्थियों को शरण देने का कोई विरोध नहीं कर रहा है लेकिन उसमें मुसलमानों का नाम हटा देने से गलतफहमी का बाजार अपने आप गर्म हो गया है। यह गलतफहमी किसी भी सहीफहमी से ज्यादा डरावनी है। दिल्ली के चुनाव ने इसे सूर्पणखा राक्षसी का रुप दे दिया है। अब सरकार चाहे तो संसद के वर्तमान सत्र में ही भूल-सुधार कर सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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