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पाकिस्तान के जयप्रकाश नारायण

डाॅ. जीनतजी को मैं ताईजी बोलता और उन दोनों के पांव छूता तो वे हंसकर बोलते ‘‘आप यह हिंदुआना हरकत क्यों कर रहे हैं?’’

New Delhi, Mar 16 : कल लाहौर में डाॅ. मुबशर हसन का निधन हो गया। वे 98 वर्ष के थे। उनका जन्म पानीपत में हुआ था। वे प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार में वित्तमंत्री थे लेकिन उनकी विद्वता, सादगी और कर्मठता ऐसी थी कि सारा पाकिस्तान उनको उप-प्रधानमंत्री की तरह देखता था। भुट्टो की पीपल्स पार्टी आफ पाकिस्तान की स्थापना उनके घर (गुलबर्ग, लाहौर) में ही हुई थी।

वे अपनी छोटी-सी फोक्सवेगन कार में ही बिठाकर भुट्टो को हवाई अड्डे से अपने घर लाए थे। उसी कार में उसी सीट पर बैठकर मैं भी मुबशर साहब के साथ लाहौर हवाई अड्डे से कई बार उनके घर पहुंचा हूं। उनके बारे में लोगों का ख्याल यह है कि वे अपने विचारों से वामपंथी थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 30 साल भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को सहज बनाने में खपा दिए। हालांकि वे मुझसे 20-22 साल बड़े थे लेकिन उनके-मेरे बीच मित्रता ऐसी हो गई थी, जैसी हम उम्र लोगों के बीच होती है। मैं जब उनके घर ही ठहरता तो वे और उनकी पत्नी डाॅ. जीनत हसन पूर्ण शाकाहारी हो जाते थे।

डाॅ. जीनतजी को मैं ताईजी बोलता और उन दोनों के पांव छूता तो वे हंसकर बोलते ‘‘आप यह हिंदुआना हरकत क्यों कर रहे हैं?’’ भारत-पाक मैत्री के वे इतने बड़े वकील थे कि वे हर साल भारत आते थे और मेरे साथ सभी भारतीय प्रधानमंत्रियों से मिलने जाते थे। मेरे साथ वे उनके शागिर्द और पाकिस्तान के राष्ट्रपति फारुख लघारी से मिलने तो जाते थे लेकिन बेनजीर भुट्टो, नवाज़ शरीफ और अन्य प्रधानमंत्रियों से मिलना उन्हें पसंद नहीं था। उन्होंने मतभेद के कारण जुल्फिकारअली भुट्टो की सरकार से इस्तीफा भी दे दिया था।

बाद में फौजी सरकार ने उन्हें सात साल तक जेल में भी डाले रखा। वे बाद में बेनजीर के भाई मुर्तजा की पार्टी में सक्रिय जरुर हुए थे लेकिन वे पाकिस्तान के जयप्रकाश नारायण की तरह काम करते रहे। सभी लोकतांत्रिक जन-आंदोलनों का वे डटकर समर्थन करते थे। वे जाने-माने इंजीनियर थे। इंजीनियरी में पीएच.डी. थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण किताबें भी लिखीं। वे पाकिस्तान ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया के रत्न थे। उनके अवसान से सारे दक्षिण एशिया को अपना परिवार समझनेवाले महान लोकनायक अब हमारे बीच नहीं है। उन्हें मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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