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निर्भया की अपनी माँ को लिखी पर्चियों में पढिए वेदना की सिहरा देने वाली दास्तान

छोटी-छोटी पर्चियों पर वह अपनी बात लिखकर डॉक्टरों और अपनी मां को दे रही थी। इन्हीं पर्चियों में देश की इस बहादुरी बेटी निर्भया ने वह तकलीफ व दर्द बयां किया…

निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के चारों मुजरिमों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को शुक्रवार की सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
इस तरह निर्भया को आज इंसाफ मिल गया, जिसका इंतजार पूरे देश को था। आज से 7 साल 3 महीने और 3 दिन पहले 16 दिसंबर 2012 की रात देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस के दौरान एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, जिसने देश को झकझोर दिया था।
16 दिसंबर 2012 को हुई दरिंदगी से देश की बेटी असहनीय पीड़ा से गुजर रही थी। धीरे-धीरे शरीर के अंग काम करना बंद कर रहे थे। सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, लेकिन वह अपना हौंसला बनाए हुई थी। छोटी-छोटी पर्चियों पर वह अपनी बात लिखकर डॉक्टरों और अपनी मां को दे रही थी। इन्हीं पर्चियों में देश की इस बहादुरी बेटी निर्भया ने वह तकलीफ व दर्द बयां किया, बेशक हम इस बेटी के दर्द को कम नहीं कर पाए। पढ़ें मां को लिखी सारी पर्ची…

19 दिसंबर 2012- मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है
मुझे याद आ रहा है कि आपने और पापा ने बचपन में पूछा था कि मैं क्या बनना चाहती हूं। तब मैंने आपसे कहा था कि मैं फिजियोथेरेपिस्ट बनना चाहती हूं। मेरे मन में एक ही बात थी कि मैं किस तरह लोगों का दर्द कम कर सकूं। आज मुझे खुद इतनी पीड़ा हो रही है कि डॉक्टर या दवाई भी इसे कम नहीं कर पा रहे हैं। डॉक्टर पांच बार मेरे छोटे-बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं लेकिन दर्द है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।
21 दिसंबर 2012 – मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं
डॉक्टरों से कहो मुझे एनीथिस्यिा न दें। जब भी आंखे बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दंरिदों क बीच फंसी हूं। जानवर रूपी ये दरिंदे मेरे शरीर के एक-एक अंग को नोच रहे हैं। बहुत डरावने हैं ये लोग। भूखे जानवर की तरह मुझ पर टूट पड़े हैं। मेरे को बुरी तरह रौंद डालना चाहते हैं । मां मैं अब अपनी आंखे बंद नहीं करना चाहती। मेरे आस-पास के सभी शीशे तोड़ डालो। मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं अपना चेहरा नहीं देखना चाहती।

22 दिसंबर 2012- मां मुझे नहला दो
मैं नाहना चाहती हूं। मैं सालों तक शॉवर के नीचे बैठे रहना चाहती हूं। उन जानवरों की गंदी छुअन को धोना चाहती हूं जिनकी वजह से मैं अपने ही शरीर से नफरत करने लगी हूं। मैंने कई बार बाथरूम जाने की कोशिश भी की। लेकिन पेट की तकलीफ की वजह से उठ ही नहीं पा रही हूं। मेरे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं सिर उठाकर आईसीयू के बाहर शीशे के पार खड़े अपनों को देख सकूं। मां आप मुझे छोड़कर मत जाना। अकेले डर लगता है। जैसे ही आप जाती हैं मेरी धड़कन बढ़ जाती है और मैं आपकों तलाशने लगती हूं।
23 दिसंबर 2012- इसी आवाज में मैं चीख रही हूं
मां ये चिकित्सीय उपकरणों की आवाज मुझे बार-बार ऐसे ट्रैफिक सिग्नल की याद दिलाते हैं जिसके तहत वाहन आवाजें कर रहे हैं लेकिन कोई रुकने का नाम नहीं ले रहा। इसी आवाज में मैं चीख रही हूं। मदद मांग रही हूं। लेकिन कोई नहीं सुन रहा। इस कमरे की शांति मुझे उस रात की ठंड को याद दिलाती है जब उन जानवरों ने मुझे सड़क पर फेंक दिया। मां आपको याद है एक बार पापा ने मुझे थप्पड़ मार दिया था और आप पापा से लड़ने लगी थीं। मां पापा कहां हैं। वो मुझसे मिलने क्यों नहीं आ रहे। वो ठीक तो हैं। उन्हें कहना वह दुखी न हों।

25 दिसंबर 2012- माँ मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं
मां आपने मुझे हमेशा मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है। मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं। इन दंरिदों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। वहशी हैं ये लोग। इनके लिए माफी का सोचना भी भूल होगी। इन्होंने मेरे दोस्त को भी बुरी तरह पीटा। जब वह मुझे बचाने की कोशिश कर रहा था। मेरे दोस्त ने मुझे बचाने की बहुत कोशिश की। वह भी बहुत जख्मी हुआ। अब कैसा है वो।
26 दिसंबर 2012- मां मैं बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो
मां मैं बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो। मैं सोना चाहती हूं। मेरा सिर मां आप अपने पैरों पर रख लो। मां मेरे शरीर को साफ कर दो। कोई दर्द निवारक दवाई भी दे दो। पेट का दर्द बढ़ता ही जा रहा है। डॉक्टरों से कहो अब मेरे शरीर का कोई और हिस्सा ना काटें। यह बहुत पीड़ादायक होता है। मां मुझे माफ कर देना। अब मैं जिंदगी से और लड़ाई नहीं लड़ सकती। और आखिर वो मौत से जंग हार गयी
(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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