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सोनू सूद के जीवन का अनसुना पहलू, कभी ट्रेन के टॉयलेट के आगे बैठकर यात्रा करते थे, ये है पूरा सच

47 वर्षीय सोनू सूद के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी बहन ने बताया कि करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, शायद यही वजह है कि वो प्रवासी मजदूरों के दर्द को दूसरों से ज्यादा महसूस कर रहे हैं।

New Delhi, Jun 04 : कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के लिये मसीहा बने सोनू सूद के जीवन का एक पक्ष तो पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन आज हम आपको उनकी जिंदगी के उस पहलू से रुबरु करवाएंगे, जिसके बारे में शायद उनके परिवार और करीबियों को छोड़ किसी को भी नहीं पता है। सोनू को आज चारों ओर से वाहवाही मिल रही है, इसका जज्बा उनके भीतर कहां से आया, वो कौन सी पीड़ा है, जिसकी वजह से महानगरों में फंसे मजदूरों की असहनीय तकलीफ देख उनका मन विचलित हो गया, असल में इसकी जड़े उनके परिवार से जुड़ी है, आइये विस्तार से बताते हैं।

रेल कोच के टॉयलेट के बीच वाली जगह में सोता था
47 वर्षीय सोनू सूद के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी बहन ने बताया कि करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, शायद यही वजह है कि वो प्रवासी मजदूरों के दर्द को दूसरों से ज्यादा महसूस कर रहे हैं, इंडियन एक्सप्रेस ने सोनू की छोटी बहन मल्विका सूद से बातचीत का एक हिस्सा छापा है, जिसमें उन्होने अपने भाई के संघर्ष के दिनों के बारे में बताया है, मल्विका के मुताबिक जब मेरा भाई नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढाई कर रहा था, तो ट्रेन के कंपार्टमेंट के टॉयलेट के पास छोटी सी खाली जगह पर सोकर जाता था, मेरे पिता उन्हें पैसे भेजते थे, तो उनकी कोशिश होती थी कि जितना कम खर्च हो उतना अच्छा, मुंबई में मॉडलिंग के लिये स्ट्रगल के दौरान वो ऐसे कमरे में रहते थे, जहां सोने के दौरान करवट बदलने की भी जगह नहीं थी, करवट बदलने के लिये भी खड़ा होना पड़ता था।

आज सीट पर बैठकर आया हूं
सोनू के पिता बेटे को इतना पैसा देते थे, कि वो अच्छे से रह सके, लेकिन वो पिता के पैसे को हिफाजत से खर्च करते थे, खास बात ये है कि सोनू ट्रेन में कैसे सफर करते थे और कैसे छोटे से कमरे में रहते थे, इस बात की भनक उन्होने कभी अपने परिवार वालों को लगने भी नहीं दिया, मल्विका ने कहा कि उसने हम लोगों को कभी कुछ नहीं बताया, लेकिन जब उनकी पहली फिल्म रिलीज हुई और वो घर आया, तो बताया कि आज मैं सीट पर बैठकर आया हूं, बड़ा अच्छा लग रहा है, तब हम लोगों को पता चला कि इससे पहले वो ट्रेन में अकसर पेपर बिछा कर बैठकर यात्रा करता था।

माता-पिता के आदर्शों पर चल रहे सोनू
बहन के मुताबिक सोनू अपने माता-पिता के बेहद करीब थे, अगर आज मम्मी-पापा होते तो शायद बेटे पर बेह गर्व करते, मल्विका ने कहा कि सोनू मम्मी-पापा को मिस करते हैं, इसलिये उन्होने जो कुछ भी सिखाया उसे जिंदा रखना चाहते हैं, मेरी मां डीएम कॉलेज मोगा में इंगलिश की लेक्चरर थी, उनके पास जो भी जरुरतमंद या गरीब छात्र ट्यूशन के लिये आया, उन्होने ऐसे छात्रों से कभी भी फीस नहीं ली।

पिता चलाते थे दुकान
अपने परिवार के बारे में बताते हुए मल्विका ने कहा कि हमारे पिताजी मेन बाजार मोगा में बॉम्बे क्लोथ हाउस के नाम से दुकान चलाते थे, जो आज भी है, जब भी सोनू भैया आता है, वो पापा की दुकान पर कुछ देर के लिये ही सही जरुर जाता है, हमारे घर से लेकर दुकान तक करीब 15 कर्मचारी है, सोनू सभी को निजी तौर पर जुड़ा रहता है।

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