New Delhi, Jun 04 : कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के लिये मसीहा बने सोनू सूद के जीवन का एक पक्ष तो पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन आज हम आपको उनकी जिंदगी के उस पहलू से रुबरु करवाएंगे, जिसके बारे में शायद उनके परिवार और करीबियों को छोड़ किसी को भी नहीं पता है। सोनू को आज चारों ओर से वाहवाही मिल रही है, इसका जज्बा उनके भीतर कहां से आया, वो कौन सी पीड़ा है, जिसकी वजह से महानगरों में फंसे मजदूरों की असहनीय तकलीफ देख उनका मन विचलित हो गया, असल में इसकी जड़े उनके परिवार से जुड़ी है, आइये विस्तार से बताते हैं।
रेल कोच के टॉयलेट के बीच वाली जगह में सोता था
47 वर्षीय सोनू सूद के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी बहन ने बताया कि करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा,
आज सीट पर बैठकर आया हूं
सोनू के पिता बेटे को इतना पैसा देते थे, कि वो अच्छे से रह सके, लेकिन वो पिता के पैसे को हिफाजत से खर्च करते थे,
माता-पिता के आदर्शों पर चल रहे सोनू
बहन के मुताबिक सोनू अपने माता-पिता के बेहद करीब थे, अगर आज मम्मी-पापा होते तो शायद बेटे पर बेह गर्व करते,
पिता चलाते थे दुकान
अपने परिवार के बारे में बताते हुए मल्विका ने कहा कि हमारे पिताजी मेन बाजार मोगा में बॉम्बे क्लोथ हाउस के नाम से दुकान चलाते थे,
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