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Opinion – नेपाल की अनावश्यक आक्रामकता

भारत-नेपाल सीमा विवाद को लेकर कई अतिवादी तेवर सामने आ गए। इस तिकोनी लड़ाई को भारत सरकार ने जिस परिपक्वता के साथ सम्हाला, वह सराहनीय है।

New Delhi, Jun 11 : लद्दाख के सीमांत पर भारत और चीन की फौजें अब मुठभेड़ की मुद्रा में नहीं हैं। पिछले दिनों 5-6 मई को दोनों देशों की फौजी टुकड़ियों में जो छोटी-मोटी झड़पें हुई थीं, उन्होंने चीनी और भारतीय मीडिया के कान खड़े कर दिए थे। दोनों तरफ के कुछ सेवा-निवृत्त फौजियों और पत्रकारों ने ऐसा माहौल बना दिया था, जैसे कि भारत और चीन में कोई बड़ी मुठभेड़ होनेवाली है। इस मुठभेड़ के साथ नेपाल को भी जोड़ दिया गया।

भारत-नेपाल सीमा विवाद को लेकर कई अतिवादी तेवर सामने आ गए। इस तिकोनी लड़ाई को भारत सरकार ने जिस परिपक्वता के साथ सम्हाला, वह सराहनीय है। भारतीय रक्षामंत्री और गृहमंत्री ने दृढ़ता तो दिखाई लेकिन अपनी सीमा-रक्षा को लेकर कोई उत्तेजक बयान नहीं दिया। अब दोनों देशों के फौजी अफसरों की बातचीत से तनाव काफी घट गया है। जिन तीन स्थानों से दोनों देशों ने अपनी फौजें 2-3 कि.मी. पीछे हटा ली हैं, वे हैं- पेट्रोल पाइंट, 14, 15, 17. जिन दो स्थानों पर अभी चर्चा होनी है, वे हैं- पेंगांग त्सो और चुशूल ! इन दो स्थानों पर भी आशा है कि आपसी समझ तैयार हो जाएगी।

भारत चाहता है कि अप्रैल माह में जो स्थिति थी, फौजें, उसी पर लौट जाएं। जैसा कि मुझे शुरु से अंदाज था कि दोनों देश इस कोरोना-संकट के दौरान कोई नया सिरदर्द मोल लेने की स्थिति में नहीं है लेकिन नेपाल की स्थिति कुछ अलग ही है। वहां की आतंरिक राजनीति इतनी विकट है कि उसके प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने मजबूर होकर भारत के विरुद्ध कूटनीतिक युद्ध की घोषणा कर दी है। उन्हें अपनी पार्टी में अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए भारत-विरोध का सहारा लेना पड़ रहा है। उन्होंने सुगौली संधि (1816) की पुनर्व्याख्या करते हुए भारत-नेपाल का एक नया नक्शा घड़ लिया है, जिसे वह अपनी संसद से पास करा लेंगे।

इस नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा के क्षेत्रों को वह नेपाली सीमा में दिखा रहे हैं। उनसे कोई पूछे कि इस संवैधानिक संशोधन का महत्व क्या है ? ऐसा करने से क्या 200 साल से चले आ रहे तथ्य उलट जाएंगे ? भारत तश्तरी में रखकर ये क्षेत्र नेपाल को भेंट कर देगा क्या ? क्या नेपाल के पास इतनी ताकत है कि वह इस क्षेत्र पर अपना फौजी कब्जा जमा लेगा ? यह ठीक है कि भारत ने इस मुद्दे पर बातचीत में बहुत देर लगा दी है लेकिन बातचीत शुरु करवाने के लिए यह संवैधानिक दबाव बनाना क्या मच्छर मारने के लिए पिस्तौल चलाने-जैसा अतिवाद नहीं है ? यह कदम उठाकर ओली सरकार नेपाली जनता की नज़र में हास्यास्पद बने बिना नहीं रहेगी। नेपाल की यह आक्रामकता अनावश्यक है।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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