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सोनिया कुढ़ती रही नरसिम्हा राव से

नरसिम्हा राव का कद कभी भी राजकोश के मामले में सोनिया के समकक्ष नहीं हो सकता था। वे प्रधानमंत्री रहे किन्तु अपने पुत्र को केवल एक पैट्रोल पम्प ही दिला पाये।

New Delhi, Jun 29 : कांग्रेस के प्रोप्राइटर्स सोनिया और राहुल गाँधी ने फितरतन नौवें प्रधान मंत्री को याद नहीं किया| आज उसी कांग्रेसी प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की जन्मशती है| माँ, बेटा, बेटी और उनकी कांग्रेस पार्टी का उनसे न कोई मतलब या सरोकार है | जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के बाद गत सदी में नरसिम्हा राव ही अकेले कांग्रेसी थे जो पूरे पांच साल की अवधि तक प्रधान मंत्री रहे| सोनिया की सोच है कि वह इस 135-वर्षीय पार्टी का इतिहास अपने “पंजे” से बदल डालेंगी| वही कूप में पड़े मंडूक की सोच!

सोनिया की अधकचरी सोच क्या प्रतिबिंबित करती है ? इसकी प्रमाणिकता दर्शाता है एक सामयिक अखबारी कार्टून| उसमें दिखाया गया था कि ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) का नाम मनरेगा क्यों कर दिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष को आशंका हुई होगी कि एन.आर.ई.जी.ए. कही नरसिम्हा राव इम्प्लायमेन्ट गारन्टी योजना न कहलाने लग जाए। अतः महात्मा गाँधी का नाम जोड़ दिया गया।
आज के परिवेश में याद करना होगा कि नरसिम्हा राव पहले राष्ट्रनायक थे जिन्होंने “लुक ईस्ट” (पूर्व को देखो) की विदेश नीति रची थी| चीन का खतरा उन्होंने अपनी 1993 की बीजिंग यात्रा पर भांप लिया था| तभी से दक्षिण एशिया राष्ट्रों से रिश्ते प्रगाढ़ बने| आज नरेंद्र मोदी ने उसे “एक्ट ईस्ट” का नाम दिया है|

कई महत्वपूर्ण पद संभालने के बाद भी नरसिम्हा राव पर हिन्दी-भाषी कांग्रेसी सन्देह ही करते रहे। इसका कारण था हिन्दी का ज्ञान, शब्द, उच्चारण, शैली और साहित्य की दृष्टि से नरसिम्हा राव उन हिन्दी-भाषी कांग्रेसियों से कहीं ऊपर थे, उत्कृष्ट थे। संस्कृत और फारसी भी धड़ल्ले से बोलते थे। दुनिया भर की कुल सत्रह भाषाओं में पटु थे| नरसिम्हा राव ने सिद्ध कर दिया कि प्रवाहमयी हिन्दी बोलना एक विशिष्ट योग्यता होती है।
नरसिम्हा राव की उपलब्धियों का उल्लेख हो तो नाटककार जार्ज बर्नार्ड शॉ की उक्ति चरितार्थ होती है कि ‘‘जन्म पर सभी समान होते हैं। बस मौत पर पता चलता है कि कौन ऊंचाई तक उठा।’’ नरसिम्हा राव ने जो विशेष कार्य किये वह तो भारी थे, अतः डूब गये, मगर जो विफलतायें थी, वे हलकी थीं, अतः सतह पर दिखती रहीं। जैसे अयोध्या प्रकरण। सन्तों से प्रवाहमय संस्कृत में संवाद कर प्रधानमंत्री ने उन्हें कारसेवा टालने हेतु मना भी लिया था। पर कल्याण सिंह की सरकार के वचन भंग के सामने केन्द्र की सरकार उन्नीस पड़ गई। नरसिम्हा राव ने लोकसभा में कहा भी था कि रामभक्तों (भाजपा) से तो सामना किया जा सकता है, पर भगवान राम से नहीं। जनता दोनों के मध्य अन्तर नहीं कर पाई और कांग्रेस पार्टी की रामविरोधी छवि बन गई। वह चुनाव हार गई।

भारत को परमाणु शक्ति बनाने की नींव भले ही इंदिरा गाँधी ने डाली हो, नरसिम्हा राव के अविचल प्रयास थे जिसने उनके सुहृद अटल बिहारी वाजपेयी को अनुप्राणित किया था| राजग के प्रधान मंत्री बनते ही अटलजी को नरसिम्हा राव ने बताया कि पोखरण द्वितीय की तैयारी फिर शुरू हो| उनकी सरकार की पूरी तैयारी थी पर तभी अमरीकी जासूस उपग्रह ने पोखरण की तस्वीर सार्वजनिक कर दिया था| अमरीकी राष्ट्रपति (जॉर्ज बुश) ने धमकी दी कि भारत की अर्थव्यवस्था, जो डगमगा रही थी, पंगु कर दिया जायेगा| तबतक सरदार मनमोहन सिंह कारगर वित्त मंत्री नहीं बने थे| नरसिम्हा राव को अपना राजनीतिक गुरु भाजपायी प्रधान मंत्री मानते थे| अतः अटल जी ने रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस से सलाह लेकर दूसरा आणविक बम फोड़ा | पाकिस्तान को पछाड़ दिया |

नरसिम्हा राव का कद कभी भी राजकोश के मामले में सोनिया के समकक्ष नहीं हो सकता था। वे प्रधानमंत्री रहे किन्तु अपने पुत्र को केवल एक पैट्रोल पम्प ही दिला पाये। हर्षद मेहता के वकील राम जेठमलानी ने मुम्बई के पत्रकारों को दर्शाया कि उनके मुवक्किल ने सन्दूक में एक करोड़ नोट कैसे लपेट कर नरसिम्हा राव को दिये थे। अर्थात जिसके एक वाक्य पर शेयर मार्केट में अरबों का वारा-न्यारा हो जाए उस प्रधान मंत्री ने केवल एक करोड़ में सन्तुष्टि कर ली ? एक अकेले बोफोर्स काण्ड में तो साठ करोड़ का उत्कोच था| अपनी आत्मकथा रूपी उपन्यास के प्रकाशक को इस भाषाज्ञानी प्रधानमंत्री को स्वयं खोजना पड़ा था। नक्सलियों से अपने खेतों को बचाने में विफल नरसिम्हा राव दिल्ली में मात्र एक फ्लैट ही बीस साल में साझेदारी में ही खरीद पाये। तो मानना पडे़गा कि नरसिम्हा राव आखिर सोनिया के कदाचार की तुलना में अपनी दक्षता, क्षमता, हनक, रुतबा, रसूख और पहुंच के बावजूद कहीं उनके आसपास भी नहीं फटकते।

नरसिम्हा राव के व्यक्तित्व के सम्यक ऐतिहासिक आंकलन में अभी समय लगेगा। मगर इतना कहा जा सकता है कि तीन कृतियों से वे याद किए जाएंगे। पंजाब में उग्रवाद चरम पर था। रोज लोग मर रहे थे। एक समय तो लगता था कि अन्तर्राष्ट्रीय सीमा अमृतसर से खिसकर अम्बाला तक आ जाएगी। खालिस्तान यथार्थ लगता था। तभी मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह और पुलिस मुखिया के.पी. सिंह गिल को पूर्ण स्वाधिकार देकर नरसिम्हाराव ने पंजाब को भारत के लिए बचा लिया। एक सरकारी मुलाजिम सरदार मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त कर नरसिम्हा राव ने आर्थिक चमत्कार कर दिखाया। मनमोहन सिंह स्वयं इसे स्वीकार चुके है। तीसरा राष्ट्रहित का काम नरसिम्हा राव ने किया कि गुप्तचर संगठन ‘‘रॉ’’ को पूरी छूट दे दी कि पाकिस्तान की धरती से उपजते आतंकी योजनाओं का बेलौस, मुंहतोड़ जवाब दें। अर्थात् यदि पाकिस्तानी आतंकी दिल्ली में एक विस्फोट करेंगे तो लाहौर और कराची में दो दो विस्फोट होंगे।

मगर जीते जी नरसिम्हा राव की जो दुर्गति कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की वह हृदय विदारक है। उससे ज्यादा खराब उनके निधन पर किया गया बर्ताव रहा है। नरसिम्हा राव के शव को सीधे हैदराबाद रवाना कर दिया ताकि कहीं राजघाट के आसपास उनका स्मारक न बनाना पड़े। भले ही संजय गांधी का स्मारक बनाया जा चुका था। पूरे पांच साल तक प्रधान मंत्री रहे व्यक्ति के शव को अकबर रोड वाले पार्टी कार्यालय के परिसर के भीतर नहीं लाया गया। बाहर फुटपाथ पर ही रखा गया। और तो और अधजली लाश को मिट्टी का तेल डालकर शेष कार्य किया गया था। ऐसी हैं सोनिया गाँधी|

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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