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व्यंग्य – जब सुशासन बाबू मिले ओली बाबा से

‘बस एक छोटा-सा अनुरोध ! आपको उत्तराखंड के तीन गांव चाहिए तो मोदी जी से या उत्तराखंडियों से फरिया लीजिए। हम बिहारियों को बाढ़ में डुबाने पर काहे तुल गए हैं ?

New Delhi, Jul 20 : ‘गोड़ लागते हैं, ओली बाबा। आप तो गजबे फेंक रहे हैं इन दिनों। हमारे मोदी जी भी अब पानी मांगने लगे हैं आपसे।’
‘अरे नहीं नीतीश जी, इतना विनम्र मत होईए ! मेरा फेंका हुआ ज्यादा से ज्यादा भारत या चीन में जाकर गिरेगा। मोदी जी वाला अमेरिका और यूरोप तक पहुंचता है। लंबी फेंकने में आपके मोदी जी भूमंडलीय नेता हैं। वैसे कहिए, कैसे आना हुआ काठमांडू ?’

‘ओली बाबा, बुरा मत मानिए। राम जी को आप भारत से ले ही आए। अक्टूबर के बिहार चुनाव के पहले आप लालू जी को भी खुखरी-टोपी पकड़ाकर नेपाली घोषित कर देते तो बिहार के सुशासन पर बड़ा उपकार होता।’
‘राम जी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। नेपाल की संस्कृति में सहज स्वीकार्य। माफ करिए, लालू जी को संभालने की कूबत हम नेपालियों में नहीं है। कुछ ही सालों में पता चलेगा कि हमारे नेपाल की राजधानी का नाम काठमांडू नहीं, गोपालगंज है और यहां की राष्ट्रभाषा भोजपुरी। कुछ और कहिए !’

‘बस एक छोटा-सा अनुरोध ! आपको उत्तराखंड के तीन गांव चाहिए तो मोदी जी से या उत्तराखंडियों से फरिया लीजिए। हम बिहारियों को बाढ़ में डुबाने पर काहे तुल गए हैं ? इस बार तो नदियों के आसपास के गांव अपना बताकर आपने जर्जर तटबंधों की मरम्मत भी नहीं करने दी। भारी तबाही हो रही है हमारे यहां। आपके कामरेड प्रचंड भी भारत विरोधी थे, लेकिन हम बिहारियों का इतना नुकसान उन्होंने भी नहीं किया कभी।’
‘नीतीश जी, कहे देते हैं कि प्रचंड का नाम मत लीजिए हमारे सामने ! हमारे खिलाफ विद्रोह उसी ने कराया है पार्टी में। हम तो उत्तराखंड के तीन गांव मांगे हैं, वह ससुरा सत्ता में लौट आया तो समूचे बिहार पर दावा ठोंक देगा। फिर कहां से चुनाव लड़िएगा आप ? वैसे अपने 15 साल के राज में आप बिहार में कायदे का एक तटबंध क्यों नहीं बना सके ? ख़ुद आपकी राजधानी पटना हर साल बारिश और नालों के पानी में डूबती है। इसमें नेपाल की गलती है ?’

‘शाब जी, मतलब यह कि आपके नेपाल की झोली में हमरे बिहार के लिए कुछ भी नहीं ?’
नहीं-नही, हमारी सरकार बच गई तो आपके बारे में भी सोचेंगे। वैसे आपके देश में कभी समुद्र पीने वाले एक अगस्त्य मुनि हुआ करते थे। अभी बिहार में ऐसा कोई बाबा-वाबा नहीं जो बागमती और कोशी नदियों का जल पी जाय ?’
‘अभी तो हमारे बिहार की राजनीति में दुईये ठो बाबा है। एक हैं शिवानंद तिवारी बाबा जो अभी लालू जी की पार्टी में हैं। उनसे कुछ भी कहना बेकार है। इंटेलेक्चुअल टाइप आदमी हैं। पानी पीते कम, पिलाते ज्यादा हैं। दूसरे बाबा हैं हमारे स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय बाबा। सरकार का पानी उतारने में लगे हैं। उनकी बात कोई डॉक्टर तो क्या, कंपाउंडर भी नहीं सुनता।

‘अच्छा तो ठीक है, अभी आप जाकर बिहार में कोरोना को संभालिए ! अपने देश में सबसे फिसड्डी आप ही साबित हो रहे हैं। लोग आपको सुशासन बाबू की जगह कोरोना कुमार कहने लगे हैं। हम यहां नेपाल में चीन की राजदूत मैडम हाओ यांकी से बात कर आपका पानी रोकने का कोई रास्ता निकालते हैं। बड़ी गुणी औरत है। हमारी हर समस्या का चुटकी में हल निकाल देती है। तबतक बिहार को लाई हाम्रो शुभकामना छ !

(Dhurv Gupt के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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