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पिता के गुजरने के बाद चिराग पासवान के सामने होगी ये 5 चुनौतियां

साल 1990 के पिछड़ा उभार के दौर से आगे निकल रामविलास ने जिस तरह समाज के हर वर्ग से तालमेल बिठाया और दलित राजनीति को अपना आधार बनाये रखा, जाहिर तौर पर चिराग के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती होगी।

New Delhi, Oct 09 : केन्द्रीय मंत्री तथा लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है, दलित राजनीति की आवाज बुलंद करने वाला एक रहनुमा भी चला गया, खास बात ये है कि साल 1990 के पिछड़ा उभार के दौर से आगे निकल रामविलास ने जिस तरह समाज के हर वर्ग से तालमेल बिठाया और दलित राजनीति को अपना आधार बनाये रखा, जाहिर तौर पर चिराग के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती होगी, ऐसे समय में जब पिता का साया सिर से उठ गया, तो सियासत की उस विरासत को कैसे बरकरार रखा जाए, इसके साथ ही घर के बड़े लड़के होने के साथ लोजपा अध्यक्ष के तौर पर चिराग के सामने अन्य कई चुनौतियां मौजूद है।

पहली चुनौती
पहली चुनौती तो ये है कि जिस तरह रामविलास पासवान अपने पूरे परिवार को (जिनमें उनके भाई-भतीजे तथा तमाम सगे संबंधी शामिल हैं) एकजुट रखा था, अधिकतर लोगों को राजनीति में लेकर आये, इस स्थिति में चिराग को अपने परिवार को समेट कर और सहेज कर रखना आसान नहीं होगा, क्योंकि परिवार में ज्यादा मतभेद सामने आते हैं।

दूसरी चुनौती
चिराग के सामने दूसरी चुनौती ये होगी कि पार्टी को एकजुट रखना होगा, इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने से लेकर उन्हें पिता की तरह संतुलन बिठाकर चलने वाले नेता के तौर पर अपनी पहचान बनानी होगी, अब ऐसा माना जाता रहा है कि चिराग अपने कार्यकर्ताओं से ज्यादा घुलते-मिलते नहीं हैं, लेकिन पिता के जाने के बाद उन पर ये जिम्मेदारी बनती है, कि लोगों के सुख-दुख में शामिल हो।
तीसरी चुनौती
चिराग के सामने तीसरी बड़ी चुनौती ये है कि जिस तरह हाल ही में उन्होने सीएम नीतीश पर हमला बोलते हुए एनडीए से अलग होने का फैसला लिया था, इससे नीतीश और चिराग के बीच काफी खटास दिख रही है, सीएम द्वारा हाल ही में कही गई बातों से लगता है कि आने वाले समय में वो केन्द्र पर ये दबाव भी बना सकते हैं कि चिराग को एनडीए से बाहर निकाला जाए, हालांकि ये कयास हैं लेकिन राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि ऐसी किसी भी आशंका से निपटने के लिये चिराग को तैयार रहना होगा।

चौथी चुनौती
जिस तरह से पासवान बिहार की राजनीति की हर नब्ज से परिचित थे, ऐसी ही अपेक्षा चिराग से भी उनके कार्यकर्ता और नेता करेंगे, जाहिर तौर पर रामविलास ने जिस अंदाज में बिहार की राजनीति और केन्द्र की सियासत के साथ तालमेल बिठाया और दोनों को एक साथ साधा, वह काबिलेतारीफ है, 6 प्रधानमंत्री के साथ योगदान देना और छाप छोड़ना कोई सामान्य बात नहीं है, जाहिर है कि चिराग पासवान के सामने अपने पिता की इस छवि को बरकरार रखने की भी चुनौती होगी।
पांचवीं चुनौती
जब से चिराग पासवान पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, उन्होने दो बड़े फैसले लिये हैं, पहला झारखंड चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का, दूसरा बिहार में नीतीश के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनके खिलाफ आवाज बुलंद की, बिहार एनडीए से अलग होना भी चिराग पासवान का एक साहसिक फैसला है।

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