New Delhi, Nov 20 : सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को अपनी सरकार बनने पर कैबिनेट मंत्री बनाने तथा जसवंतनगर से उनके मुकाबले किसी को नहीं उतारने की बात कहकर यादव परिवार में सुलह करने की कोशिश कम बल्कि यादव परिवार के परंपरागत वोटों को सहेजने की कोशिश शुरु कर दी है। हालांकि शिवपाल की ओर से इस प्रस्ताव पर बहुत सकारात्मक रुख नहीं दिखाया गया है, लेकिन प्रदेश में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिये नये गठबंधनों के संकेत जरुर निकलने लगे हैं, हालांकि इन गठबंधन का स्वरुप और समीकरण किस तरह का होगा, ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है।
बीजेपी विरोधियों में अकुलाहट
अखिलेश यादव का ये बयान तथा मायावती का प्रदेश अध्यक्ष को बदलना ये बताने के लिये पर्याप्त है कि
2017 के बाद से विफल रहे हैं अखिलेश
दरअसल 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान यादव परिवार में विघटन के बाद से अखिलेश यादव के सियासी प्रयोग लगातार नाकाम रहे हैं, 2017 में 50 से कम सीटों पर सिमटी सपा के रणनीतिकारों को एहसास हो गया था कि
परंपरागत सीटें हाथ से निकली
हालांकि शिवपाल के छिटकने की वजह से अखिलेश यादव को बड़ा नुकसान हुआ, सपा की परंपरागत सीटें फिरोजाबाद, कन्नौज और बदायूं तक बीजेपी ने छिन लिये,
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