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सियासत के मंझे खिलाड़ी हैं नीतीश, चौंका सकता है अरुणाचल का जवाब देने के लिये जदयू का प्लान!

बिहार में एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी तथा जदयू के बीच चुनाव से पहले तथा चुनाव के बाद अब तक काफी कुछ ऐसा घट चुका है, जिसे एक आम आदमी भी सामान्य नहीं मानता।

New Delhi, Jan 06 : बिहार की राजनीति में लगातार गरमाहट बरकरार है, बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान पूरे देश की निगाह नतीजों पर रही, बेहद नजदीकी परिणामों ने सरकार बनने तक आम मतदाता को भी सांसत में रखा, सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई में सरकार गठन के बाद लगा कि अब बिहार की राजनीतिक हलचल कुछ कमजोर पड़ जाएगी, सभी अपने रोजमर्रा के काम में लग जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

जदयू ने बीजेपी का किया विरोध
बिहार में एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी तथा जदयू के बीच चुनाव से पहले तथा चुनाव के बाद अब तक काफी कुछ ऐसा घट चुका है, जिसे एक आम आदमी भी सामान्य नहीं मानता, भले ही बीजेपी के शीर्ष नेता दोनों दलों के रिश्ते मजबूत होने का लगातार दावा करते रहे, ऐसा दावा सीएम नीतीश कुमार का दल जदयू भी कर रहा है, लेकिन अरुणाचल की घटनाक्रम ने इस परिस्थिति में परिवर्तन ला दिया है, पहली बार जदयू बीजेपी के कदम का खुलकर विरोध कर रही है, एक के बाद एक कई मंचों पर जदयू ने एक ही बात दोहराया है, कि वो इस पूरे वाकये को लेकर चैन से नहीं है।

हर सवाल का सही मौके पर जवाब
बिहार के सीएम नीतीश कुमार पिछले 15 साल से प्रदेश की राजनीति के केन्द्र में बने हुए हैं, उन्होने तमाम झंझावातों में अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने दिया है, कभी वो कमजोर होते दिखे भी तो उन्होने ऐसा दांव चला कि सारे समीकरण ध्वस्त हो गये, वो एक बार फिर से उतनी ही ताकत के साथ वापस लौटे, पिछले 4 विधानसभा चुनावों में वो जिस गठबंधन के साथ रहे, जीत उसी की हुई, इन 4 चुनावों में 3 बार वो बीजेपी के साथ रहे, तो एक बार राजद-कांग्रेस के साथ लड़कर मैदान मारा, चुनाव के बाद दो बार उन्होने 5 साल के कार्यकाल के बीच अपना साथी बदल लिया, दोनों ही बार उन्होने अपने फैसले से हर किसी को हैरान किया है।

मांझी के कार्यकाल के दौरान भी घटा था नीतीश का प्रभाव
जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें, तो वो 15 साल से प्रदेश के सीएम बने हुए हैं, मांझी को सीएम बनाना भी उन्हीं का निर्णय था, इस दौरान भी सरकार पूरी तरह उनके नियंत्रण में रहे, जब लगा कि मांझी उनके नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं, तो उन्होने तुरंत कमान अपने हाथ में ले ली, मांझी से सत्ता वापस लेना आसान काम नहीं था, क्योंकि तब उनके साथ वाले तथा विरोधी दोनों मांझी को ताकत और हवा देने में जुटे रहे, लेकिन हुआ वही, जो नीतीश चाहते थे।

सबकुछ भूलने के मूड में नहीं
अरुणाचल में बीजेपी ने जदयू के 7 में से 6 विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया, जदयू ही अरुणाचल में मुख्य विपक्षी पार्टी थी, अब इस प्रदेश में विपक्ष लगभग अस्तित्वहीन हो गया है, जदयू के नेताओं ने बीजेपी के इस कारनामे की सार्वजनिक मंचों से लगातार निंदा की है, इसे गठबंधन धर्म के विपरीत बताया है, जदयू के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने पद संभालते ही सबसे पहले अरुणाचल के मुद्दे पर बयान दिया, बीजेपी के इस कदम की आलोचना की, बिहार में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने भी मंगलवार को लगभग ऐसा ही बयान दिया, इस मुद्दे पर जदयू की ओर से लगातार रिएक्शन दिखा रहा है कि अबकी बार पार्टी सबकुछ भूलने के मूड में नहीं है।

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