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उपेन्द्र कुशवाहा की ‘घर वापसी’, होली से पहले मिलेंगे दिल, पढिये Inside Story

सुशासन बाबू ने कुशवाहा को हमेशा सम्मान दिया है, 2004 में कुशवाहा को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ये संदेश दिया कि उपेन्द्र उनके दिल के कितने करीब हैं।

New Delhi, Mar 10 : जदयू से कब बाहर निकला और नीतीश से कब मैं अलग था, ये बयान देकर रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने प्रदेश का सियासी पारा चढा दिया है, सियासत से ताल्लुक रखने वाले समझ चुके हैं कि कुशवाहा क्या चाहते हैं, कहते हैं कि सियासत में कभी भी कुछ भी हो सकता है, क्योंकि मतभेद में गुंजाइश बनी रहती है, मनभेद में गुंजाइश थोड़ी कम रहती है, कुशवाहा का नीतीश से मतभेद था, मनभेद नहीं, बहुत दिनों तक अपने दोस्त से जुदा होने के बाद अब दोबारा को दोस्त के गले लगने को बेकरार हैं, होली दहलीज पर हैं, और कहते हैं ना कि होली में हर गिले शिकवे दूर जाते हैं, लोग पुरानी बात भूलकर एक-दूसरे को गले लगते हैं, बस इसी बात को कुशवाहा चरितार्थ करने जा रहे हैं, सूत्रों के अनुसार 14 मार्च को रालोसपा का विलय जदयू में हो सकता है।

नीतीश ने हमेशा सम्मान दिया
सुशासन बाबू ने कुशवाहा को हमेशा सम्मान दिया है, 2004 में कुशवाहा को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ये संदेश दिया कि उपेन्द्र उनके दिल के कितने करीब हैं, 2010 में राज्यसभा भेजा, तो फिर से अपने बड़प्पन का परिचय नीतीश ने दिया, उपेन्द्र कुशवाहा का लक्ष्य था कि नीतीश के समानांतर खड़ा होना, मानव श्रृंखला हो या फिर शिक्षा या सामाजिक कुरीतियां, हर मुद्दे पर कुशवाहा ने नीतीश के विरोध में अपनी राजनीतिक दीवार मजबूत करने की कोशिश की, हालांकि हर बार नाकामी हाथ लगी, नीतीश से सियासी दुश्मनी के चक्कर में अब उनकी पार्टी में ना कोई विधायक बचा और ना कोई सांसद, यहां तक कि खुद भी सांसद और विधानसभा परिसर से दूर हो गये।

1985 में सियासत में एंट्री
उपेन्द्र कुशवाहा 1985 में राजनीति में आये, 1988 तक युवा लोकदल के राज्य महासचिव रहे, फिर 1988 से 1993 तक राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी मिली, 1994 में समता पार्टी के महासचिव बने, 2000 में पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने, 2004 में नीतीश ने नेता प्रतिपक्ष बनाया, 2005 में नीतीश से रिश्तों में खटास आई, कुशवाहा ने जदयू से रिश्ता तोड़ लिया, नेशनल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये, फिर 2009 में जदयू में वापस आये, 2010 में राज्यसभा सांसद बने, नीतीश से फिर से रिश्तों में खटास आई, राज्यसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ, और उन्होने इस्तीफा दे दिया।

फिर नीतीश के करीब
उपेन्द्र कुशवाहा ने 2013 में रालोसपा का गठन किया, फरवरी 2014 में एनडीए में शामिल हो गये, 2014 लोकसभा चुनाव में तीन सीटें मिली, मोदी सरकार में मंत्री बने, 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए से नाता तोड़ा, एनडीए से अलग होने के बाद महागठबंधन में शामिल हुए, 2019 लोकसभा चुनाव में दो जगहों से लड़े, दोनों जगह से हारे, लोकसभा चुनाव में रालोसपा का खाता भी नहीं खुला, 2020 में महागठबंधन से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन यहां भी नाकामी हाथ लगी, सियासी जमीन पर कुशवाहा ने हर पिच पर खेला, हर खिलाड़ी के साथ जोड़ी बनाई लेकिन नीतीश जैसा ना दोस्त मिला और ना ही जोड़ीदार, न ही जदयू जैसी सम्मान वाली पार्टी, इसलिये अब वो फिर से घर लौट रहे हैं।

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