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बंगाल में बीजेपी से कहां हुई चूक, कहीं ये वजह तो नहीं?

ये सच है कि इस चुनाव में बीजेपी काफी मजबूती के साथ टीएमसी का सामना किया, लेकिन ममता के बराबर कोई नेता या सीएम फेस ना होना, उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई।

New Delhi, May 02 : पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की सरकार बनना तय है, बड़ी जीत की ओर से बढते हुए टीएमसी 200 प्लस सीटों पर आगे है, वहीं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के मुताबिक बीजेपी 100 से कम सीटों पर सिमटती नजर आ रही हैं, ऐसे में सवाल ये है कि 200 प्लस के दावे पीएम मोदी से लेकर केन्द्रीय मंत्रियों के हैवीवेट चुनाव प्रचार तथा सत्ताधारी दल में बड़े स्तर पर सेंधमारी के बाद भी बीजेपी से आखिर कहां पर चूक गई, जानिये 5 बड़ी वजह

ध्रुवीकरण की राजनीति फेल
पश्चिम बंगाल चुनाव में इस बार ध्रुवीकरण को बड़े मुद्दे के रुप में देखा जा रहा है, चुनावी माहौल बनने से पहले ही बीजेपी लगातार ममता बनर्जी और टीएमसी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही, बीजेपी अपनी हर रैली तथा हर सभा में जय श्रीराम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाकर पेश करती रही, फिर टीएमसी भी इससे अछूती नहीं रही, ममता बनर्जी ने पहले सार्वजनिक मंच पर चंडी पाठ किया, फिर अपना गोत्र भी बताया, हरे कृष्ण हरे हरे का नारा दिया।

सीएम चेहरा ना होना
ये सच है कि इस चुनाव में बीजेपी काफी मजबूती के साथ टीएमसी का सामना किया, लेकिन ममता के बराबर कोई नेता या सीएम फेस ना होना, उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई, पार्टी के अंदरुनी सूत्रों ने भी कई बार इस पर चिंता जाहिर की। कोलकाता तथा दिल्ली बीजेपी के गलियारों में बीजेपी की ओर से सीएम फेस के लिये कई नामों की चर्चा हुई, जिसमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का नाम सबसे आगे रहा, हालांकि पार्टी के अंदर ही एक असंतुष्ट धड़ा है, जो उनके नाम को लेकर राजी नहीं था, इस वजह से आलाकमान के मन में सीएम फेस को लेकर कई संदेह रहे, और पार्टी ने पूरा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा।

बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा
लोकसभा चुनाव में 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के लिये पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी लड़ाई थी, जिसके लिये उसे प्रदेश की जमीनी और बड़े चेहरे चाहिये थे, इसके लिये बीजेपी ने दूसरे दलों खासकर टीएमसी में सेंधमारी शुरु की, सत्ताधारी दल के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में मिला लिया। इनमें सबसे बड़ा नाम शुभेन्दु अधिकारी और मुकुल रॉय का माना जाता है, जो ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी रहे, तथा बंगाल की सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।

अपनों की नाराजगी मोल ली
विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल की जमीनी आधार बनाने के लिये बीजेपी ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी ज्वाइन कराई और उन्हें बड़े पैमाने पर टिकट दिये, हालांकि इसके चलते पार्टी ने अपने नेताओं की नाराजगी मोल ले ली, टिकट बंटवारे के दौरान बंगाल बीजेपी यूनिट में असंतोष की खबरें आई, और कई जगह बीजेपी के दफ्तर तोड़फोड़ भी हुई, इससे विवश होकर बीजेपी को कई बार संशोधन भी करना पड़ा।

साइलेंट वोटर्स ने नहीं दिया साथ
बंगाल चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि बीजेपी को उनके साइलेंट वोटर का साथ नहीं मिला, दरअसल बिहार चुनाव के बाद पीएम मोदी ने देश की महिलाओं को बीजेपी का साइलेंट वोटर बताते हुए उन्हें विशेष रुप से धन्यवाद किया, लेकिन बंगाल में बीजेपी का ये वोटबैंक खिसकता नजर आया।

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