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रामविलास परिवार- 2 शादी, 3 बेटी, लेकिन जानते सब चिराग पासवान को ही है

पहली शादी से उनकी बेटी आशा पासवान ने पिछले साल उनके निधन के बाद आरोप लगाया था कि उनकी बीमारी के हालत में भी छोटी मां ने षडयंत्र रचकर हम लोगों से मुलाकात करने नहीं दी।

New Delhi, Jun 17 : लोजपा में दो फाड़ हो चुका है, चाचा-भतीजे के बीच पार्टी में वर्चस्व को लेकर जंग जारी है, ऐसे में रामविलास पासवान और उनके कृतित्व को भी याद करना लाजिमी हो गया, आखिरकार पासवान उन गिने-चुने नेताओं में थे, जो यदाकदा ही विवादों में रहे, हालांकि उनका व्यक्तिगत जीवन विवादों से भरा रहा, लेकिन आम लोगों में उन्होने अपनी छवि ऐसी बना रखी थी, उनके विवादों की चर्चा ज्यादा नहीं हुई।

51 साल राजनीति
1969 में पहली बार विधायक बनने के बाद राजनीति में करीब 51 साल गुजारने के बाद 2020 में रामविलास पासवान दुनिया को अलविदा कह गये, पासवान ने दो शादियां की थी, उनकी पहली शादी 14 साल की उम्र में राजकुमारी देवी से हुई थी, जो आज भी बिहार के खगड़िया में उनके पैतृक आवास में रहती हैं, पहली शादी से उनकी दो बेटियां है, जबकि दूसरी पत्नी रीना से बेटा चिराग और एक बेटी है।

बेटी ने लगाया था आरोप
पहली शादी से उनकी बेटी आशा पासवान ने पिछले साल उनके निधन के बाद आरोप लगाया था कि उनकी बीमारी के हालत में भी छोटी मां ने षडयंत्र रचकर हम लोगों से मुलाकात करने नहीं दी, हमलोगों ने हवाई जहाज का टिकट भी ले लिया था, लेकिन अंतिम समय में ये कहकर मना कर दिया गया, कि अभी लॉकडाउन है, अभी यहां आने की कोई जरुरत नहीं है, आशा देवी कैमरे के सामने ही फूट-फूट कर रोई थीं।

मौसम वैज्ञानिक
रामविलास पासवान को लेकर सोसाइटी में एक युक्ति थी, कि वो राजनीति के मौसम वैज्ञानिक हैं, वो जिसके साथ जाते थे, उनकी सरकार बन जाती है, पिछले तीन दशक में शायद ही ऐसा कोई प्रधानमंत्री हो, जिसकी कैबिनेट में वो मंत्री नहीं रहे, वो बाजपेयी जी से लेकर मनमोहन सरकार तक में मंत्री रहे। हालांकि वो ये ज्ञान चिराग पासवान को देना भूल गये, या फिर ये एक ऐसा नैसर्गिक ज्ञान था, जो चाहकर भी अपने बेटे में ट्रांसफर नहीं कर सके, जबकि वो चाहते थे कि चिराग ही उनकी विरासत संभाले।

वोटर उनके साथ
सबसे खास बात ये रही कि वो किसी भी पार्टी या गठबंधन के साथ रहें हो, उनका एक खास वोटबैंक पर राज थे, वो किसी के साथ चुनाव लड़े हों, जीत पक्की थी, हालांकि इन सबके बीच में बिहार के नेतृत्व करने, बिहार का सीएम बनने की इच्छा अधूरी रह गई, लालू के शासनकाल में वो उनके साथ भी रहे और विरोध में भी रहे, वो बिहार से ज्यादा केन्द्र की सियासत में एक्टिव दिखे।

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