आखिर क्‍यों पंजशीर पर क़ब्ज़ा करना है इतना मुश्किल? तालिबान ही नहीं सोवियत संघ भी है हारा

तालिबानियों ने पंजशीर को चारों ओर से घेर लिया है, दावा है कि वो इस बार अफगानिस्‍तान के इस प्रांत को जीतकर रहेगा । लेकिन ये घाटी जीतना इतना आसान नहीं है ।

New Delhi, Aug 26: अफगानिस्‍तान पर तालिबान के कब्‍जे के बाद पंजशीर घाटी पर उसकी टेढ़ी नजर है । बस यही एक प्रांत है जिस पर तालिबानी कब्‍जा नहीं कर पाए हैं । इससे पहले भी तालिबानी यहां मुंह की खा चुके हैं, 1980 के दशक में सोवियत सेना को भी उल्‍टे पांव लौटना पड़ा था । घाटी में मौजूद नेशनल रेज़िस्टेंस फ़्रंट ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान ने दुनिया को इस घाटी की ताक़त फिर से याद दिला दी है ।

पंजशीर क्‍यों है अभेद्य?
पंजशीर घाटी का भूगोल इसे अभेद्य बनाता है । लंबी, गहरी और धूल भरी यह घाटी राजधानी काबुल के उत्तर में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक क़रीब 75 मील यानी करीब 120 किमी में फैली है । इसके साथ ही घाटी के तल से चारों ओर क़रीब 9,800 फ़ीट यानी 3,000 मीटर ऊंची पहाड़ों की चोटियां हैं । ये पहाड़ प्राकृतिक सुरक्षा कवच की तरह हैं । इस घाटी में केवल एक ही संकरी सड़क है जो कि बड़े चट्टानों और घुमावदार पंजशीर नदी के बीच से निकलती है ।

पंजशीर के ‘शेर’
पंजशीर घाटी में 1.5 से 2 लाख लोग रहते हैं, यहां के अधिकांश लोग ‘दारी’ भाषा बोलते हैं । ये भाषा ताजिक मूल की भाषा है जो अफ़ग़ानिस्तान की मुख्य भाषाओं में से एक है । अफगानिस्‍तान की 3.8 करोड़ की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा ताजिकों का ही है ।  हालांकि पंजशीरी अपनी स्थानीय पहचान को महत्‍ता देते हैं । पंजशीर के निवासिायों को देश के बड़े नेता सबसे बहादुर बताते हैं । यहां के लोगों में ये आत्‍मविश्‍वास, ब्रिटेन, सोवियत संघ और तालिबान को हराकर आया है ।

सबसे छोटे प्रांतों में से एक है पंजशीर
साल 2001 में तालिबान की हार के बाद पंजशीर घाटी को ज़िले से बढ़ाकर एक प्रांत का दर्जा दिया गया था,  यह अफ़ग़ानिस्तान के सबसे छोटे प्रांतों में से एक है । पंजशीरी नेताओं को सरकार के साथ सेना में भी महत्‍वपूर्ण पद मिले । इस घाटी को स्वायत्तता मिली, खास बात ये कि यह देश का अकेला ऐसा प्रांत था, जहां वहीं के गवर्नर बनाए गए, जबकि दूसरे प्रांतों में स्थानीय लोगों को गवर्नर नहीं बनाया जा सकता था ।
क्‍यों है महत्‍वपूर्ण?
पंजशीर घाटी इतनी अहम और अभेद्य क्‍यों है इसे लेकर जानकार बताते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में सैकड़ों ऐसी घाटियां हैं, लेकिन पंजशीर की काबुल से उत्तर को जाने वाली मुख्य सड़क से नजदीकी है । इसी वजह से यह रणनीतिक रूप से महत्‍वपूर्ण मानी जाती है । जानकारों के मुताबिक इस घाटी में दूर से मोर्चा लेने के दर्जनों स्थान हैं, पहाड़ी इलाका है, पंजशीरियों की बहादुरी और स्‍वाभिमान जैसे कई कारक हैं जो इस प्रांत को मजबूत बनाते हैं । 20 साल पहले तब  तालिबान हटा तो उसने अपने हथियार भी सरकार को सौंप दिए थे, इन हथियारों के भंडार वहां अभी भी मौजूद हैं ।

अहमद मसूद के नेतृत्‍व में लड़ रहे हैं पंजशीरी
पंजशीर की घाटी में तालिबान का विरोध कर रहे दल के नेता 32 साल के अहमद मसूद हैं । वो वॉर लॉर्ड अहमद शाह मसूद के बेटे हैं । मसूद लगातार विदेशी ताकतों से उनका समर्थन करने का आह्वाहन कर रहे हैं । एक हालिया मीडिया रिपोर्ट में उनके हवाले से बताया गया कि मसूद ने बताया है कि उनके पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं, जिसे उन्‍होंने अपने पिता के ज़माने से इकठ्ठा किया है । आपको बता दें अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद को ‘पंजशीर के शेर’ के उपनाम से भी बुलाया जाता था । वो एक मुजाहिदीन कमांडर थे, जिन्होंने अपने दम पर सोवियत रूस और तालिबान दोनों की सेनाओं को पंजशीर के बाहर ही रोक दिया था । अहमद मसूद तब 12 साल के थे जब उनके पिता की फिदायीन हमले में मौत हो गई थी । अहमद मसूद आज अपने लोगों के लिए खड़े हैं, उन्‍होंने वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा है- “यदि तालिबान के सरदार हमला करते हैं तो उन्हें निश्चित रूप से हमारे कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा… फिर भी हम जानते हैं कि हमारे सैन्य बल और रसद पर्याप्त नहीं होंगे.” मसूद ने लिखा कि-  “हमारे संसाधन तेज़ी से समाप्त हो जाएंगे, जब तक कि हमारे पश्चिम मित्र बिना देर किए हमें सप्लाई पहुंचाने का कोई रास्ता नहीं खोज लेते।”

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