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दल बदलुओं ने सबसे ज्यादा कांग्रेस को पहुंचाया नुकसान, दूसरे नंबर पर मायावती की पार्टी, बीजेपी को फायदा

मीडिया रिपोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि इन 7 सालों में दल-बदलने वाले उम्मीदवारों की संख्या 1133 है, इनमें से 22 फीसदी उम्मीदवारों ने बीजेपी का दामन थामा।

New Delhi, Sep 10 : चुनाव से पहले नेताओं का पार्टी बदलना कोई नई बात नहीं है, हालांकि मौजूदा दौर में इस सियासी बदलाव का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है, एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से लेकर 2021 के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस के 177 सांसद और विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए, हाल ही में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने पार्टी को अलविदा कहा, इस मामले में कांग्रेस के बाद दल-बदल का सामना सबसे ज्यादा मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने किया है, खास बात ये है कि इस दौरान सबसे ज्यादा फायदे मं बीजेपी रही, बीजेपी छोड़ने वालों की संख्या भी कम है, साथ ही अन्य दलों के मुकाबले दल-बदलने वाले नेता भी बड़े स्तर पर इस पार्टी में शामिल हुए हैं।

क्या कहते हैं आंकड़ें
मीडिया रिपोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि इन 7 सालों में दल-बदलने वाले उम्मीदवारों की संख्या 1133 है, इनमें से 22 फीसदी उम्मीदवारों ने बीजेपी का दामन थामा, इस दौरान दल-बदलने वाले कुल नेताओं में से 35 फीसदी यानी 177 सांसद-विधायक कांग्रेस के थे, वहीं बीजेपी  के मामले में ये आंकड़ा 33 यानी 7 फीसदी है, हालांकि पार्टी बदलने वाले नेताओं की दूसरी पसंद भी कांग्रेस ही रही, इसके बाद पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी टीएमसी का नंबर है।

कांग्रेस-बसपा के दल-बदल गणित को ऐसे समझें
रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस पार्टी दल-बदल की सबसे बड़ी गवाह रही, 7 सालों की अवधि में कांग्रेस के सर्वाधिक 222 नेता अन्य पार्टियों में शामिल हुए, वहीं बसपा 153 सदस्य चुनाव से पहले अन्य दलों का हिस्सा बने, आंकड़े इस बात के सबूत देते हैं, कि नेताओं के पार्टी बदलने का सबसे ज्यादा फायदा संख्या के लिहाज से बीजेपी को हुआ, 1133 में से 253 नेता ने बीजेपी का दामन थामा था।

कांग्रेस की आंतरिक कलह बन रही परेशानी
2022 में चुनावी दौर से गुजरने के बाद तैयार पंजाब में कांग्रेस आंतरिक कलह का सामना कर रही है, सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह तथा नये प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तनातनी है, कहा जा रहा था कि सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनने से विवाद खत्म हो सकता है, लेकिन पार्टी के कई नेताओं ने आशंका जताई थी कि इससे दोनों नेताओं के बीच जारी विवाद और खुलकर सामने आएगा।

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