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अमित शाह की वजह से किनारे हो गये वरुण-मेनका, अब क्या है विकल्प, जानिये परदे के पीछे की कहानी

वरुण-मेनका के लिये भविष्य के राजनीतिक विकल्प पर चर्चा करने से पहले इस सवाल का जवाब ढूंढना जरूरी है, दरअसल लखीमपुर तथा किसानों के आंदोलन को लेकर पिछले कुछ समय से वरुण गांधी की ओर से किये जा रहे तीखे सवाल बीजेपी को चूभने लगे हैं।

New Delhi, Oct 11 : लखीमपुर हिंसा तथा किसानों के मुद्दे को लेकर लगातार योगी सरकार को निशाने पर लेने वाले पीलीभीत सांसद वरुण गांधी बगावत पर उतारु दिख रहे हैं, वरुण की ओर से लगातार किये जा रहे हमलों से योगी सरकार असहज महसूस करने लगी है, इसे लेकर राजनीतिक के जानकार तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं, सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर इस बगावती रुख का कारण क्या है, वरुण और उनकी मां मेनका के सामने आगे क्या विकल्प हो सकते हैं। दरअसल देखा जाए, तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल से ही गांदी परिवार के ये दूसरे वारिस खुद को भाजपा के भीतर उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, कहा जा रहा है कि वरुण गांधी के बगावती रुख के कारण ही बीजेपी की नई कार्यकारिणी से उनकी छुट्टी हो गई।

बीजेपी में दरकिनार कर दिये गये वरुण-मेनका
वरुण-मेनका के लिये भविष्य के राजनीतिक विकल्प पर चर्चा करने से पहले इस सवाल का जवाब ढूंढना जरूरी है, दरअसल लखीमपुर तथा किसानों के आंदोलन को लेकर पिछले कुछ समय से वरुण गांधी की ओर से किये जा रहे तीखे सवाल बीजेपी को चूभने लगे हैं। इन सवालों के पीछे कई कारण हैं, एक तो वरुण और मेनका जिन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वो तराई के इलाके हैं, वहां अच्छी खासी संख्या में सिख किसान वोटर्स हैं, ऐसे में अपने राजनीतिक हित को देखते हुए वरुण-मेनका के लिये किसानों के समर्थन में बोलना मजबूरी है, लेकिन दूसरा सवाल ये है कि बीजेपी नेतृत्व और वरुण-मेनका के बीत बीते कुछ सालों से बनी दूरी कहां तक जाएगी। पीएम के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को कैबिनेट में जगह नहीं मिली, लगातार 4 बार से सांसद वरुण गांधी को भी अहम जिम्मेदारी नहीं मिली, जबकि एक समय वरुण का नाम यूपी में बीजेपी के संभावित सीएम के चेहरे के रुप में होती थी। वरुण ने पिछले दिनों खुद कहा था कि उन्होने बीते 5 सालों से बीजेपी की एक भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हिस्सा नहीं लिया है।

शाह की टीम में वरुण के लिये जगह नहीं
2014 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे, तो उस समय वरुण गांधी को पार्टी के मामलों में काफी महत्व दिया जाता था, राजनाथ के कार्यकाल में वो राष्ट्रीय महासचिव थे, लेकिन जैसे-जैसे पार्टी पर अमित शाह की पकड़ मजबूत होती गई, वरुण किनारे होते गये। अपुष्ट रिपोर्ट में कहा जाता है कि 2014 चुनाव में अमित शाह ने वरुण गाधी को अमेठी और रायबरेली में प्रचार के लिये कहा था, लेकिन उन्होने ऐसा करने से मना कर दिया, यहीं से वरुण और शाह के बीच दूरियां बढने लगी, हालांकि मोदी के पहले कार्यकाल में मेनका गांधी को कैबिनेट में जगह मिली, लेकिन 2019 में वो किनारे कर दी गई।

वरुण के सामने विकल्प
वरुण गांधी के बयानों तथा पार्टी पर अमित शाह और योगी की पकड़ को देखते हुए ये स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि निकट भविष्य में वरुण गांधी के लिये बीजेपी के भीतर कोई बड़ी भूमिका नहीं है, ऐसे में युवा वरुण अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, ऐसे में सवाल ये है कि उनके सामने विकल्प क्या हैं। दरअसल गांधी परिवार के भीतर जेठानी और देवरानी यानी सोनिया और मेनका गांधी के बीच के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं, 1980 में इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की मौत के कुछ ही समय बाद मेनका ने अपना ससुराल छोड़ दिया था, तब से आज तक गांधी परिवार के ये दोनों वारिस किसी मंच पर साथ नहीं दिखे हैं, गांधी परिवार की चौथी पीढी राहुल प्रियंका और वरुण गांधी भी सार्वजनिक रुप से कभी साथ नहीं दिखे हैं। लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है, अपुष्ट रिपोर्ट में दावा किया जाता है, कि वरुण गांधी और उनकी चचेरी बहन प्रियंका के बीच रिश्ते बेहतर हैं, दूसरी ओर प्रियंका यूपी में कांग्रेस के लिये जमीन तैयार करने में जुटी है, ऐसे में परिस्थितियों को देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, वरुण गांधी कांग्रेस का दामन थाम लें, लेकिन परेशानी उनकी मां मेनका गांधी हैं, जो किसी भी कीमत में कांग्रेस में जाने को तैयार नहीं हैं।

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