New Delhi, Oct 13: हैदराबाद के मशहूर कैफ़े निलोफर के मालिक अणुमुला बाबू राव की सफलता की कहानी किसी की भी आंखें नम कर सकती है, हर किसी के लिए प्रेरणादायी हो सकती है । आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में एक छोटे से गांव में जन्मे बाबू राव एक किसान परिवार से हैं । शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा था । परिवार में हर दिन दो रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल था । ऐसे में अच्छी जिंदगी और पढ़ाई-लिखाई का सपना कोई देखे भी तो कैसे । लेकिन बाबू राव साधारा परिवार में रहकर भी असाधारण सोच के थे । उनके, स्वीपर से मालिक बनने की ये कहानी आपको जरूर जाननी चाहिए ।
सरकारी स्कूल में की पढ़ाई, किताबें खरीदना था मुश्किल
बाबू राव ने पांचवीं तक की पढ़ाई अपने चाचा के साथ महाराष्ट्र के चंद्रपुर में रहकर की। लेकिन दिक्कत ये थी कि स्कूल में पढ़ाई तो मुफ्त थी लेकिन उस समय छात्रों को खुद अपनी किताबें खरीदनी पड़ती थी। छठी के बाद किताबें लेना मुश्किल हो रहा था तो वो अपने समुदाय द्वारा चलाये जा रहे एक हॉस्टल चले गए । इस हॉस्टल में रहने-खाने की फीस 100 रुपए थी, लेकिन पांच गरीब बच्चों को मुफ्त में रखा जाता था। उन्हीं 5 में एक बाबू भी थे । जब वो 16 साल के थे, दसवीं की किताबों के लिए 100 रुपए की जरूरत थी। तब उनके पिता ने एक गाय बेचकर इसका इंतजाम किया था ।
1975 में हैदराबाद चले गए
बाबू राव ने दसवीं की परीक्षा मन लगाकर की, लेकिन वो ये भी जान गए थे कि
स्वीपर से बन गए होटल मालिक
इस होटल में स्वीपर के काम से शुरुआत करने वाले बाबू राव जल्द वेटर बन गए । इसके बाद उन्हें किचन में शिफ्ट कर दिया गया । यहीं उन्होंने कैफ़े की एक्स्ट्रा स्पेशल ईरानी चाय और ओसमानिया बिस्कुट बनाए थे ।
(News Input: hindi.thebetterindia.com)
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