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सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो… पर प्रियंका गांधी की किरकिरी, कवि ने सबके सामने कह दी ऐसी बात

कविता के मूल लेखक पुष्यमित्र ने ट्वीट कर लिखा है, प्रियंका गांधी जी ये कविता मैंने देश की स्त्रियों के लिये लिखी थी ना कि आपकी घटिया राजनीति के लिये, ना तो मैं आपकी विचारधारा का समर्थन करता हूं और ना ही आपको ये अनुमति देता हूं, कि आप मेरी साहित्यिक संपत्ति का राजनैतिक इस्तेमाल करें।

New Delhi, Nov 18 : यूपी के चित्रकूट में एक कार्यक्रम के दौरान महिलाओं में जोश भरने के लिये कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक कविता सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो, अब ना गोविंद आएंगे, कब तक आस लगाओगी तुम, बिके हुए अखबारों से, कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारो से… सुनाई थी, इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है, दरअसल कविता के मूल लेखक पुष्यमित्र उपाध्याय ने ट्वीट करके प्रियंका गांधी की कड़ी आलोचना की है।

लेखक ने किया तीखा प्रहार
कविता के मूल लेखक पुष्यमित्र ने ट्वीट कर लिखा है, प्रियंका गांधी जी ये कविता मैंने देश की स्त्रियों के लिये लिखी थी ना कि आपकी घटिया राजनीति के लिये, ना तो मैं आपकी विचारधारा का समर्थन करता हूं और ना ही आपको ये अनुमति देता हूं, कि आप मेरी साहित्यिक संपत्ति का राजनैतिक इस्तेमाल करें, कविता भी चोरी कर लेने वालों से देश क्या उम्मीद रखेगा।

महिला संवाद के दौरान कविता का इस्तेमाल
आपको बता दें कि यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इसे लेकर प्रियंका गांधी काफी एक्टिव हैं, यूपी में अपना खोया जनाधार पाने के लिये प्रियंका पूरा जोर लगा रही हैं, बुधवार को चित्रकूट में महिलाओं से संवाद के दौरान प्रियंका गांधी ने महिलाओं में उत्साह भरते हुए ये कविता सुनाई थी, प्रियंका गांधी ने मंदाकिनी नदी के रामघाट पर महिलाओं से संवाद किया था, जिसमें उन्होने योगी सरकार पर निशाना भी साधा और मत्स्य गजेन्द्रनाथ मंदिर में जाकर जलाभिषेक भी किया था।

लोगों का रिएक्शन
कवि के ट्वीट के बाद लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई है, एक ने लिखा, भाई किसी की कविता पढते हो तो कविता के अंत में या फिर कविता के शुरुआत में कवि का नाम लेना अनिवार्य है, नहीं तो कविता का रचनाकार चाहे तो केस कर सकता है, उसे जो आपत्ति है, वो व्यक्त कर सकता है, भाई बड़े-बड़े कवियों की कविताओं पर ऐसे केस हुए हैं। दूसरे यूजर ने लिखा, मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां छोटे-छोटे मसखरे, छोटे से फायदे के लिये अपने देश को बेच सकते हैं, ऐसे लोगों की वजह से हम मुगलों के गुलाम रहे, फिर अंग्रेजों के, ऐसे लोगों को 1893 में शिकागो में स्वामी विवेकानंद का भाषण सुनना चाहिये, उस पर भी खूब तालियां बजी थीं।

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