New Delhi, Dec 27 : यूपी विधानसभा चुनाव में पश्चिम का किला फतह करने की कमान रालोद के हवाले करने के अखिलेश के फैसले से सपा में असंतोष बढ रहा है, जिसका फायदा बीजेपी को मिलने की संभावना है, दरअसल पश्चिमी यूपी सपा-रालोद गठबंधन को चुनाव में जीत की गारंटी माना जा रहा था, लेकिन सपा के नेतृत्व ने रालोद के समक्ष एक तरह से समर्पण कर 38 सीटें उसके लिये छोड़ी है, इस फैसले से सपा के ताकतवर और जिताऊ उम्मीदवार सकते में हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिन्हें खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ाने का भरोसा दिया था, लेकिन ऐन मौके पर अखिलेश ने एक तरह से पश्चिमी यूपी की गन्ना पट्टी रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के हवाले कर दी है।
क्या है दिक्कत
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक रालोद की दिक्कत है कि उसके पास राजनीतिक जमा पूंजी कृषि बिलों के खिलाफ जाटों में उपजे असंतोष और नाराजगी के रुप में मौजूद है, बड़े चौधरी अजित सिंह के गुजरने के बाद रालोद का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हुआ है,
बिना प्रभाव वाले क्षेत्र
सहारनपुर में जहां रालोद का कुछ खास प्रभाव नहीं है, वहां देवबंद और रामपुर मनिहारान सुरक्षित सीट रालोद को दी गई है,
शामली में भी दो सीट
शामली जिले में भी रालोद को शामली तथा थानाभवन दो सीट दी गई हैं, प्रोफेसर सुधीर पंवार के सपा से चुनाव लड़ने की स्थिति में गन्ना मंत्री सुरेश राणा परेशानी में पड़ गये हैं, बीजेपी नेतृत्व उन्हें देवबंद या चरथावल से चुनाव लड़ाने की रणनीति पर विचार कर रहा है,
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