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पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के त्यागपत्र की भाषा एक जैसी, Inside Story

क्या हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के अति आत्मविश्वास से पार्टी द्वारा जतन से तैयार किये गये सामाजिक समीकरणों को नुकसान पहुंच रहा है, पिछले कुछ दिनों से 3 मंत्रियों समेत कई ओबीसी नेताओं के पार्टी छोड़ने से ये सवाल उठ खड़ा हुआ है।

New Delhi, Jan 14 : यदि योगी बीजेपी को यूपी चुनाव जिता देते हैं, तो वो इतिहास रच देंगे, देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में अभी तक किसी सीएम ने ना तो 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया है और ना ही दोबारा चुनाव जीता है, लिहाजा यदि जीत मिलती है, तो ये योगी के राजनीतिक करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी, जीत पक्की करने के मकसद से योगी आदित्यनाथ इसे 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी का चुनाव बनाना चाहते हैं, यूपी की आबादी में हिंदूओं और मुसलमान का अनुपात 80.20 का है, ये गंभीर रणनीति से ज्यादा अतिश्योक्ति है, भारत के किसी चुनाव में किसी राजनीतिक दल को 80 फीसदी वोट नहीं मिला है।

हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण
लेकिन क्या हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के अति आत्मविश्वास से पार्टी द्वारा जतन से तैयार किये गये सामाजिक समीकरणों को नुकसान पहुंच रहा है, पिछले कुछ दिनों से 3 मंत्रियों समेत कई ओबीसी नेताओं के पार्टी छोड़ने से ये सवाल उठ खड़ा हुआ है, यूपी में बीजेपी का जिताऊ फार्मूला 60.40 का है, ना कि 80.20 का, 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड बहुमत तमाम लोगों के लिये इससे पहले तक अविश्वसनीय थी, 2019 में दो मजबूत क्षेत्रीय दलों सपा और बसपा का गठबंधन कागज पर काफी मजबूत नजर आ रहा था, 2017 में जब बीजेपी को दो तिहाई बहुमत की प्रचंड जीत मिली थी, तब भी सपा और बसपा का वोट शेयर 44 फीसदी था, जबकि बीजेपी का 40 फीसदी, लेकिन मई 2019 में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया, उस चुनाव में बीजेपी ने 80 में से 62 सीटें जीती, तब बीजेपी को 50 फीसदी वोट मिला था, सपा-बसपा का वोट शेयर संयुक्त रुप से 37.5 फीसदी रहा था।

बीजेपी को ये जीत कैसे मिली
सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव बाद नेशनल इलेक्शन स्टडी 2019 के आंकड़ों में यूपी में सपा-बसपा के कोर वोटर यादव, जाटव तथा मुस्लिम को छोड़कर अन्य वोटरों के ध्रुवीकरण की तस्वीर साफ करते हैं, बीजेपी की 2019 की रणनीति पहले भी सफल हो चुकी थी, 2017 के चुनाव से पहले हिंदुस्तान टाइम्स में छपी प्रशांत झा की रिपोर्ट बीजेपी की चुनावी रणनीति के बारे में विस्तार से बताती है, ये ऊंची जातियों के साथ-साथ गैर यादव ओबीसी जातियों और गैर जाटव दलितों पर फोकस करने की रणनीति थी, ये यूपी की आबादी के 55 से 60 फीसदी होते हैं, सुनील बंसल ने इस रणनीति को जमीनी धरातल पर उतारा, उन्होने पार्टी के संगठन ढांचे में बदलाव करते हुए कई ओबीसी नेताओं को जिलों में प्रमुख बनाया, समाज के इस तबके से कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, पार्टी अपनी रणनीति के आधार पर परिणामों को लेकर आश्वस्त थी, रिपोर्ट में एक बीजेपी नेता के हवाले से कहा गया कि ऊंची जातियों के 83 फीसदी से ज्यादा 17 फीसदी यादव, 73 फीसदी गैर यादव पिछड़ा वर्ग, 25 फीसदी जाटव और 50 फीसदी गैर जाटव ने बीजेपी को वोट दिया।

आधार वोट बैंक
हाल में 3 मंत्रियों समेत 13 विधायकों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया, ज्यादातर नेताओं के त्यागपत्र की भाषा मेल खाती है, इन सबने बीजेपी पर सामाजिक रुप से उपेक्षित ओबीसी तथा अनुसूचित जाति के लोगों के प्रति असंवेदनशीलता का आरोप लगाया है, डाटाबेस के मुताबिक बीजेपी छोड़ने वाले 13 में से 9 विधायक ओबीसी से आते हैं, दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी छोड़ने वाले पिछड़ा वर्ग के ज्यादातर नेता गैर यादव जातियों से हैं, इन्हें बीजेपी का आधार वोट बैंक माना जाता है, हालांकि इनमें से कई ने 2017 चुनाव से ठीक पहले ही पार्टी ज्वाइन की थी, साफ दिख रहा है कि सपा बीजेपी के गैर यादव ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है, पिछले साल नवंबर में अखिलेश ने वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो प्रदेश में जातिय जनगणना कराई जाएगी। इसके जरिये सभी उपजातियों को उनकी आबादी के हिसाब से लाभ दिलाया जाएगा।

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