आंखों के सामने डूब गए थे बेटा-बेटी तो छोड़ी थी राजनीति, आज पूरी शिवसेना हिला दी, शिंदे की कहानी

एक इंटरव्यू में इस दर्दनाक घटना को याद करते हुए शिंदे ने कहा था, ‘ये मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था। मैं पूरी तरह टूट चुका था। मैंने सब कुछ छोड़ने का फैसला किया। राजनीति भी।’

New Delhi, Jun 23: शिवसेना की गले की फांस बने एकनाथ शिंदे 22 साल पहले राजनीति छोड़ चुके थे, उनके साथ हुए एक हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी थी । लेकिन आज वही शिंदे महाराष्‍ट्र की तकदीर बदलने पर आमादा हैं । शिवसेना के सच्‍चे सिपाही एकनाथ शिंदे ने पार्टी के कई विधायकों को साथ में लेकर बगावत कर दी है । बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि शिंदे तीन बच्‍चों के पिता हैं, लेकिन उनके साथ हुए एक हादसे ने उनके दो बच्‍चों को उनसे छीन लिया ।

22 साल पहले हुआ था हादसा
ये साल 2000 कीर बात है, आज से 22 साल पहले 2 जून को एकनाथ शिंदे अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा के साथ सतारा गए थे। बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखो के सामने डूब गए। उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था। एक इंटरव्यू में इस दर्दनाक घटना को याद करते हुए शिंदे ने कहा था, ‘ये मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था। मैं पूरी तरह टूट चुका था। मैंने सब कुछ छोड़ने का फैसला किया। राजनीति भी।’

आज शिवसेना को हिला दिया
एकनाथ शिंदे फिलहाल सबसे चर्चित राजनेता बन चुके हैं । उन्‍होंने शिवसेना और उद्धव ठाकरे के सिंहासन को झकझोर कर रख दिया है। शिंदे कैसे शिवेसना में इस मुकाम तक पहुंचे, ये कहानी भी दिलचस्‍प है । 9 फरवरी 1964 को जन्‍मे शिंदे सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका के रहने वाले हैं, लेकिन उनकी कर्मभूमि ठाणे रही। वो ठाणे में ऑटो चलाते थे। शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दीघे से प्रभावित होकर उन्होंने शिवसेना ज्वॉइन कर ली। इसके बाद वो शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे म्युनिसिपल के कॉर्पोरेटर चुने गए। बेटा-बेटी की मौत के बाद जब शिंदे पूरी तरह से टूट गए थे और राजनीति छोड़ने का फैसला कर चुके थे तो तो दीघे ही उन्हें वापस लाए थे। आनंद दीघे का कद तब महाराष्ट्र की राजनीति में इतना बड़ा था कि खुद बाला साहब को भी लगने लगा था कि कहीं वे पार्टी से बड़े नेता न बन जाएं।

आनंद दीघे की अचानक मौत
26 अगस्त 2001 को एक हादसे में आनंद दीघे की मौत हो गई । उनकी मौत आज भी रहस्‍य है, कई लोग मानते हैं कि ये हादसा नहीं हत्या थी । दीघे की मौत के बाद शिवसेना को ठाणे में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कोई चेहरा चाहिए था। चूंकि शिंदे शुरुआत से ही दीघे के साथ जुड़े हुए थे लिहाजा उनकी राजनीतिक विरासत शिंदे को ही मिली। शिंदे का कहना है कि उन्हें राजनीति में लाने और अहम जिम्मेदारियां देकर नेतागीरी सिखाने वाले आनंद दीघे ही थे।
लगातार चार बार जीते
शिंदे भी अपने गुरु की तरह जन नेता रहे, लोगों का विश्‍वास जीतते रहे । साल 2004 में पहली दफा विधायक बने। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शिंदे ने देखते ही देखते ठाणे में ऐसा वर्चस्व बना लिया कि वहां की राजनीति का केंद्र बन गए। साल 2009, 20014 और 2019 विधानसभा चुनाव में भी जीत का सेहरा उनके ही सिर बंधा। साल 2014 में नेता प्रतिपक्ष भी बनाए गए । मंत्री पद पर रहते हुए शिंदे के पास हमेशा अहम विभाग रहे। साल 2014 में वो फडणवीस सरकार में PWD मंत्री रहे। 2019 में शिंदे को सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और नगर विकास मंत्रालय का जिम्मा मिला। महाराष्ट्र में आमतौर पर CM यह विभाग अपने पास रखते हैं।

बगावत के पीछे कौन?
बताया जा रहा है कि शिंदे के बागी होने के पीछे फणनवीस और उनके बेटे का हाथ है । अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए शिंदे ने अपने बेटे को भी मैदान में उतार दिया। पेशे से डॉक्टर श्रीकांत शिंदे कल्याण लोकसभा सीट से सांसद हैं। श्रीकांत के मुताबिक, भाजपा के साथ उनकी राजनीति का सुनहरा भविष्य है। वहीं फडणवीस भी जानते थे कि उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने के लिए शिंदे ही सबसे मजबूत कड़ी हैं। भाजपा कई मौकों पर कहती रही है कि शिंदे को साइडलाइन किया जा रहा है। बीते दो सालों में शिंदे विधायकों के ज्‍यादा करीब आ गए, कोविड की वजह से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे न कोई बड़ी बैठक कर पाए और न ही विधायकों से ज्यादा मिल पाए। ठाकरे की जगह शिंदे विधायकों से लगातार मिलते रहे और उनकी समस्याएं सुलझाते रहे। माना जा रहा है कि यहीं अंदरखाने उन्होंने शिवसेना के विधायकों का भरोसा जीत लिया और बगावत के लिए तैयार कर लिया।

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