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द्रौपदी मुर्मू संघर्ष- 3 बच्चे और पति को खोने के बाद भी हार नहीं मानी, इस तरह सदमे से उबरी

द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था, वो आदिवासी संथाल परिवार से नाता रखती हैं।

New Delhi, Jul 21 : राष्ट्रपति चुनाव के लिये मतगणना जारी है, अभी तक एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू आगे चल रही है, माना जा रहा है कि वो ही देश की 15वीं राष्ट्रपति बनेगी, हालांकि अभी आधिकारिक ऐलान बाकी हैं, द्रौपदी मुर्मू अगर राष्ट्रपति बनती है, तो वो इस पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला होंगी, मुर्मू ने अपने जीवन में संघर्ष करने के साथ ही काफी दुख भी झेले हैं, अपने तीन जवान बच्चों तथा पति को खोने के बाद वो टूटी नहीं बल्कि हिम्मत के साथ जिंदगी में आगे बढती रही।

3 बच्चों, पति को खोया
द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था, वो आदिवासी संथाल परिवार से नाता रखती हैं, उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था, फिर साल 1980 में उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हो गई, उनके 4 बच्चे जिसमें 2 लड़का और दो लड़की हुई, उनमें एक सिर्फ एक बेटी जीवित बची है, मुर्मू के पति के अलावा दोनों बेटे और एक बेटी का निधन हो चुका है।

एक के बाद एक दुख
शादी के बाद साल 1981 में द्रौपदी मुर्मू पहली बार मां बनी, उन्होने बेटी को जन्म दिया, हालांकि 3 साल की उम्र में 1984 में उनकी मौत हो गई, फिर 25 अक्टूबर 2010 में उनके बड़े बेटे लक्ष्मण मुर्मू की मौत हो गई, तब वो 25 साल के थे, जवान बेटे की अचानक निधन से मां पूरी तरह टूट गई, इस सदमे से उबरने के लिये वो रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी आश्रम जाने लगी, हालांकि वो इस सदमे से उबरी नहीं थी, कि 2 जनवरी 2013 को उनके छोटे बेटे शिपुन की मौत हो गई, छोटे बेटे की मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया, हालांकि धीरे-धीरे मेडिटेशन के जरिये उन्होने इस सदमे से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन डेढ साल बाद 1 अक्टूबर 2014 को उनके पति श्याम चरण मुर्मू चल सके, इसके बाद तो द्रौपदी ने आश्रम जाना बंद कर दिया।

अपने छूटे तो दूसरों को बनाया अपना
रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की सुप्रिया ने बताया कि 2014 तक वो सेंटर आती थी, लेकिन फिर आना कम कर दिया, इसके बाद भी उनका ध्यान करने का रुटीन नहीं टूटा, वो बेहद मिलनसार हैं, भले ही उनके अपने साथ छोड़ गये, लेकिन उन्होने जिंदगी में आगे बढने के लिये दूसरों को अपना बना लिया।

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