New Delhi, Aug 07 : 11 अगस्त को देशभर में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा, गाजियाबाद से 30 किमी दूर स्थित मुरादनगर के सुराना गांव में 12वीं शताब्दी से ही लोग रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं, इस गांव की बहू तो अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है, लेकिन इस गांव की बेटियां अपने भाई को राखी नहीं बांधती, इतना ही नहीं अगर इस गांव के लोग किसी दूसरे स्थान पर भी जाकर बस जाते हैं, तो भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते, गांव के लोग इस दिन को काला दिन मानते हैं।
चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का है गांव
सुराना गांव पहले सोनगढ के नाम से जाना जाता था, यहां छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का एक विशाल ठिकाना है, राजस्थान के अलवर से आकर यहां लोग बसे हैं, ऐसा माना जाता है कि
22 हजार के आस-पास आबादी
गांव की कुल आबादी करीब 22 हजार है, जिसमें ज्यादातर निवासी रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं, क्योंकि वो छाबड़िया गौत्र से हैं, वो इस दिन को अपशगुन मानते हैं, हालांकि जो लोग बाद में यहां निवास करने आये, वो भी गांव की इस परंपरा को मानने लगे, साथ ही गांव में हर घर से एक व्यक्ति सेना या पुलिस में अपनी सेवा दे रहा है, हर साल उनकी कलाई सुनी रह जाती है।
मोहम्मद गोरी ने कई बार किये आक्रमण
गांव वालों के अनुसार इस गांव में मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किये, लेकिन हर बार उसकी सेना गांव में घुसने के बाद अंधी हो जाती थी, क्योंकि देवता इस गांव की रक्षा करते थे, वहीं रक्षाबंधन देवता गंगा स्नान करने चले गये थे, जिसकी सूचना गोरी को लग गई, उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया। एक अन्य गांव वाले महावीर सिंह यादव ने बताया कि 1206 में रक्षाबंधन के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव पर आक्रमण किया, जिसके बाद फिर ये गांव बसा, क्योंकि गांव की रहने वाली एक महिला जसकौर उस दिन अपने पीहर गई थी, तब वो प्रेग्नेंट थी, मोहम्मद गोरी के आक्रमण से बच गई थी, बाद में जसकौर ने दो बच्चों लकी और चुंडा को जन्म दिया, इन्हीं दोनों ने बड़े होकर इस गांव को बसाया। गांव के कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके घर रक्षाबंधन के दिन बेटा या फिर उनके घर में पल रही गाय को बछड़ा हुआ, जिसके बाद उन्होने रक्षाबंधन मनाने की कोशिश की, लेकिन फिर घर में हुई दुर्घटना के बाद त्योहार मनाना छोड़ दिया, गांव की प्रधान रेनू यादव बताती है कि गांव में पुरानी परंपरा है, यहां रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता, छाबड़िया गौत्र की कुल आबादी करीब 8 हजार है, जो ये रक्षाबंधन नहीं मनाते, इसके अलावा बाहर से बसी कुछ अन्य गोत्र भी उस त्योहार को नहीं मनाते हैं।
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