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अब इस “तड़पाते तलाक” पर भी बहस हो !

हिंदू महिलाओं के लिए भी बिना किसी कारण पति का छोड़ देने का ट्रामा तीन तलाक की पीड़ा से कम नहीं है। और खतरनाक बात है कि हाल के सालों में यह ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ा।

New Delhi, Aug 17 : अभी पिछले एक साल से तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम औरतों की दशा पर जोरदार बहस शुरू हुई है। “देर आए, दुरूस्त आए” की तर्ज पर “अंत भला तो सब भला” सी हालत है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच किसी भी समय निर्णय दे देगी। उम्मीद है इनके पक्ष में ही देगी। इस भयावह कुरूति से निजात मिलनी ही चाहिए थी। लेकिन जब मुस्लिम महिलाओं के हित की बात उठ गयी है तो यह बहस जारी रहनी चाहिए। मुस्लिम महिलाओं की सालों के दर्द को दूर करने की इस कानूनी-राजनीतिक-सामाजिक-मीडिया का जैसा प्रयास हुआ वही अब हिंदू महिलाओं की दशा को सुधारने के लिए करना चाहिए जिसकी कोई बात नहीं करता है।

हिंदू महिलाओं के लिए भी बिना किसी कारण पति का छोड़ देने का ट्रामा तीन तलाक की पीड़ा से कम नहीं है। और खतरनाक बात है कि हाल के सालों में यह ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ा।
जरा 2011 की जनगणना रिपोर्ट को डिकोड कीजिये तो हिंदू महिलाओं का अपना तीन तलाक का दर्द सामने आता है। इनके लिए शादी के बाद अलगाव के दर बहुत बढ़ा है। मुस्लिमों में तलाक लेना आसान काम है। वे ह्वाटस अप पर भी दे देते हैं। इस कारण जिन मामलों में अलग होने की नौबत आती है वहां तलाक की औपचारिकता पूरी कर वे निकल लेते हैं।
लेकिन हिंदुओं में तलाक लेना जटिल कानूनी प्रक्रिया है। वहीं इसके अलावा तलाक को अभी भी समाज में उतनी मान्यता नहीं मिली है। ऐसे में इसका दूसरा रास्ता बना लिया। महिलाओं को बीच अधर में छोड़ देने का। आपको गांवों में कोई ऐसा घर नहीं मिलेगा जहां महिला को छोड़कर उसका पति चला गया है।

सामाजिक स्तर पर वह शादी के बंधन में है लेकिन हकीकत में उन्हें छोड़ा जा चुका है और इसका पता उन्हें भी रहता है। पूरी जिंदगी यह महिलाएं बिना किसी सामाजिक-कानूनी संरक्षण में जीवन बिता देती है। बहुत ही कठिन और कष्टकर जिंदगी है इनकी। इन्हें बचाने के लिए न सामाजिक कवच है। न कानूनी। कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है कि कैसे इन महिलाओं की जिंदगी कटती है। न यह बिन ब्याही रहती है। न शादीशुदा।
2001 से 2011 के बीच ऐसी अकेली-छोड़ी महिलाओं की तादाद में 39 फीसदी की रिकार्ड वृद्धि हुई है। आजादी के बाद इस संख्या में कभी इतनी वृद्धि दर्ज नहीं गयी थी। इनमें अधिकतर संख्या हिंदू महिलाओं की है। अब जिस तरह हर ओर से मुस्लिम महिलाअों के लिए आवाज उठी,उम्मीद करनी चाहिए कि वही कोशिश इनके लिए भी होगी।

जरा आंकड़े को देखें-
2011 के हिसाब से तलाकशुदा महिला
मुस्लिम- 212074
हिंदू- 618529
महिलाअों का अलगाव बिना तलाक के
मुस्लिम- 287618
हिंदू- 1904390
अगर आप इस संख्या को डिकोड करें तो मुस्लिम के तलाक और अलगाव के बीच गैप कम है लेकिन हिंदू में बहुत बड़ा गैप है। और यह भी कि इनमें वह लाखों अनकहे अलगाव शामिल नहीं है जिस सच को समाज के स्तर पर सभी जानते हैं।

(पत्रकार नरेन्द्रनाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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